सचेतन 147 : श्री शिव पुराण- आपकी शक्ति ही आपकी प्रकृति है

आपके अंदर तीन प्रकार की शक्तियाँ मौजूद हैं

‘योग’ के अभ्यास से एक अद्भुत सितारा (आत्मा) आपके भृकुटि के बीच सदा चमकता रहेगा। प्रमुख वैज्ञानिक और प्रसारक भले ही इस स्त्रोत की मान्यता का खंडन करें परन्तु अनेक अनेक लोग दैनिक प्रार्थना, चिंतन, सकारात्मक पुष्टिकरण इत्यादि द्वारा अपने जीवन को सशक्त एवं आशावान बनाने में इसका उपयोग करते हैं | योग अभ्यास का प्रयोग करें अथवा न करें, यह आपका निजी फैसला है |  इस प्रतिक्रिया की शुरुआत में सोचिये मैं, प्रकाश हूँ, चमकता हुआ प्रकाश।

स्वयं को सर्वोच्च शक्ति के स्रोत के साथ जोड़ने से एक चमकता हुआ प्रकाश का अनुभव आप अपने अंदर करेंगे जिसको प्रकृति कहते हैं। 

व्यापकतम अर्थ में, प्रकृति यानी प्राकृतिक, भौतिक या पदार्थिक जगत या ब्रह्माण्ड हैं। “प्रकृति” का सन्दर्भ भौतिक जगत के दृग्विषय से हो सकता है और सामन्यतः जीवन से भी हो सकता हैं। प्रकृति का अध्ययन, विज्ञान के अध्ययन का बड़ा हिस्सा है। यद्यपि मानव प्रकृति का हिस्सा है, मानवी क्रिया को प्रायः अन्य प्राकृतिक दृग्विषय से अलग श्रेणी के रूप में समझा जाता है।

आपकी प्रकृति ‘उमा’ नाम से विख्यात परमेश्वरी है जो प्रकृति देवी भी है। इन्हीं की शक्तिभूता वाग्देवी सरस्वती ब्रह्माजी की अर्द्धांगिनी हैं और दूसरी देवी, जो प्रकृति देवी से उत्पन्न हुई है वह, लक्ष्मी रूप में विष्णुजी की शोभा बढ़ती हैं तथा काली नाम से जो तीसरी शक्ति उत्पन्न हुई है, वह अंशभूत रुद्रदेव को प्राप्त हुई है। 

ये देवी शक्ति के रूप में कार्यसिद्धि के लिए ज्योतिरूप में प्रकट होती हैं। उनका कार्य सृष्टि, पालन और संहार का संपादन है।आपके अंदर स्त्री शक्ति आपकी प्रकृति के रूप में मौजूद है और पुरुष की शक्ति आपके पुरुषार्थ का प्रतीक है।

दुर्गा पुराण में दिव्य स्त्री देवी दुर्गा को सर्वोच्च शक्ति माना गया है। वह हिंदुओं में धार्मिक आराधना की एक आकृति है और इन्हें ब्रह्मांड का मूल निर्माता माना जाता है। देवी भागवत पुराण में देवी दुर्गा को शक्ति (नारी शक्ति) के प्रतीक के रूप में स्तुति करते हैं। हिंदु देवी दुर्गा की पूजा देवी के रूप में करते हैं, जो सभी की उत्पत्तिकर्ता मानी जाती है क्योंकि आरम्भ में, परम शक्ति ‘निर्गुण’ (बिना आकार के) थी, जिसने बाद में स्वयं को तीन शक्तियों (सत्त्विक, राजसी और तामसी) के रूप में प्रकट किया। 

आपके अंदर तीन प्रकार की शक्तियाँ मौजूद हैं- 

सत्त्विक शक्ति- रचनात्मक क्रिया और सत्य का प्रतीक है। 

राजसी शक्ति- लक्ष्यहीन कर्म और जुनून पर केंद्रित है। 

तामासी शक्ति- विनाशकारी क्रिया और भ्रम का प्रतिनिधित्व करता है। 

अगर आप किसी की रक्षा या या पालन पोषण करते हैं तो तीनों लोकों का पालन करने वाले श्रीहरि आपके भीतर तमोगुण और बाहर सत्वगुण का धारण करते हैं

अगर आप अडिग और अपने सभी अवगुण, द्वेष को ख़त्म करेंगे तो आओके अंदर त्रिलोक का संहार करने वाले रुद्रदेव जैसे भीतर से सत्वगुण और बाहर तमोगुण धारण करते हैं वैसा प्रतीत होगा तथा 

अगर आप किसी चीज की रचना या सृजन करते हैं तो त्रिभुवन की सृष्टि करने वाले ब्रह्माजी जैसे बाहर और भीतर से रजोगुणी हैं वैसा महसूस करेंगे। इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु तथा रुद्र तीनों देवताओं में गुण हैं तो शिव गुणातीत माने जाते हैं। 

सृजन एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें नये विचार, उपाय या कांसेप्ट का जन्म होता है। वैज्ञानिक मान्यता यह है कि सृजन का फल में मौलिकता एवं सम्यकता दोनो विद्यमान होते हैं। निर्माण सृजन का समतुल्य शब्द है, किन्तु इसमें मौलिकता का बोध नहीं है। किसी जानकारी के आधार पर कोई भी निर्माण कर सकता है।


Posted

in

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *