सचेतन 130 : श्री शिव पुराण- उग्र रूप सर्वतोभद्र यानी सभी तरफ से सुन्दर है।
शिव और अर्जुन के बीच युद्ध राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, समाजनीति, युद्धनीति, जनजीवन आदि का परिचायक है। यह एक कसौटी भी है।
महर्षि व्यासजी के कहे अनुसार अर्जुन दिव्य मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ का जप और घोर तपस्या किया और भगवान शिव प्रसन्न हुए थे। उसी समय अर्जुन के पास दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ ‘मूक’ नाम का एक राक्षस सूकर का रूप धारण कर वृक्षों को उखाड़ता, पर्वतों को नुकसान पहुंचाता वहां पहुंचा। और भगवान शिव अब अर्जुन का परीक्षा लेना चाहा।
‘मूक’ नाम का एक राक्षस सूकर को देखकर अर्जुन को समझते देर नहीं लगी कि ये मेरा ही नुकसान-अहित करना चाहता है। उन्होंने तुरंत अपना धनुष-बाण उठा लिया।
उसी समय शिवजी अपने गणों सहित भील का रूप (जानवर शिकारी के रूप में) धारण कर वहां पहुंच गए। उसी पल सूकर ने आक्रमण करने के लिए कदम बढ़ाए कि तभी भीलराज और अर्जुन ने एकसाथ बाण छोड़े। भीलराज का बाण सूकर के पीछे के भाग में लगा और मुंह से निकलता हुआ पृथ्वी में चला गया। अर्जुन द्वारा चलाया गया बाण सूकर के मुंह में लगकर उसके पीछे के भाग से निकलकर पृथ्वी पर गिर गया। वह सूकर तत्काल मर गया।
यह युद्ध शिव और अर्जुन के बीच शुरू हो गई की एक हत्या दो तीर की वजह से हुई।
अर्जुन अपना बाण उठाने के लिए नीचे झुके कि उसी पल भीलराज का एक अनुचर भी उस बाण को उठाने के लिए झपटा। अर्जुन ने बहुत कहा कि यह बाण तो मेरा है, इसमें मेरा नाम अंकित है, फिर भी अनुचर अपनी हठ पर ही अड़ा रहा। अंत में उस अनुचर ने अर्जुन को बहुत भला-बुरा कहा और युद्ध के लिए ललकारा।
अर्जुन को भी गुस्सा आ गया। वह बोले- ‘मैं तुमसे नहीं, तुम्हारे राजा से युद्ध करूंगा।’ यह बात जब भगवान शिव ने सुनी तो वो अपने गणों सहित युद्ध के लिए तैयार हो गए। दोनों में घमासान युद्ध हुआ। अर्जुन के बाण से घायल होकर शिवगण चारों दिशाओं की ओर भागने लगे।
फिर किरात वेषधारी शिवजी ने अर्जुन के कवच और बाणों को नष्ट कर दिया। तब अर्जुन ने भगवान शिव का ध्यान किया और उस किरात वेषधारी का पैर पकड़कर उसे जोर-जोर से प्रार्थना करने लगे। तभी शिवजी अपने असली रूप में प्रकट हो गए।
यह किरात वेशधारी शिव का आधार राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, समाजनीति, युद्धनीति, जनजीवन आदि का परिचायक है। यह एक कसौटी भी है।
आप उग्र रूप में युद्ध के चरमोत्कर्ष तक पहुँच जाते हैं। शिव और अर्जुन के युद्ध में यह समझने को मिलता है की वह निश्चित ही मनुष्य नहीं है जो जो अपने से कमजोर से भी पराजित हो जाय।
और वह भी मनुष्य नहीं है जो अपने से कमजोर को मारे।
जिसका नेता पराजित न हुआ हो वह हार जाने के बाद भी अपराजित है। जो पूर्णनतः पराजित को भी मार देता है वह पापरहित नहीं है ।
यह उग्र रूप सर्वतोभद्र है। जो सभी तरफ से सुन्दर है। अर्जुन अपने सामने शिवजी को पाकर एकदम अवाक् रह गए। वो तुरंत शिवजी को प्रणाम करके स्तुति करने लगे। तब शिवजी बोले- ‘मैं तुम पर प्रसन्न हूं, वर मांगो।’
अर्जुन ने कहा- ‘नाथ! मेरे ऊपर शत्रु का जो संकट मंडरा रहा था वह तो आपके दर्शन मात्र से ही दूर हो गया, अत: जिससे मेरी इहलोक की परासिद्धि हो, ऐसी कृपा करें।’
शिवजी ने मुस्कुराते हुए अपना अजेय पशुपत अस्त्र देते हुए कहा- ‘वत्स! इस अस्त्र से तुम सदा अजेय रहोगे। जाओ विजय को प्राप्त करो।’ और फिर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए। अर्जुन प्रसन्नचित हो अपने बंधुओं के पास लौट आए।
पाशुपतास्त्र एक ऐसा अस्त्र है जो पूरे हिंदू इतिहास में सबसे शक्तिशाली और भयंकर हथियारों में शुमार है। जो की भगवान शिव और देवी काली का मुख्य हथियार माना जाता है। कहा जाता है की इसे मन, आंखों, शब्दों या धनुष से छोड़ा जाता था। पाशुपतास्त्र की शक्ति ऐसी थी कि इसे कम दुश्मनों या कम योद्धाओं के खिलाफ इस्तेमाल करने से मना किया जाता था। यह हथियार सभी प्राणियों के लिए अपार नरसंहार करने और उन पर काबू पाने में सक्षम है। इसलिए सलाह दी जाती है कि पाशुपतास्त्र का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।