सचेतन: बुद्धचरितम्-16 कामविगर्हणम्
बुद्धचरित की कथा – सिद्धार्थ और बिंबिसार संवाद
जब मगधराज बिंबिसार ने राजकुमार सिद्धार्थ को राज्य और समृद्धि की ओर आकर्षित करने वाली बातें कहीं, तो शांत और गंभीर मन से सिद्धार्थ ने उत्तर दिया। उन्होंने कहा –
“हे राजन्! आप चन्द्रवंश में जन्मे हैं, आपके द्वारा ऐसा कहना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। क्योंकि आप सच्चे मित्र हैं, और आपका हृदय शुद्ध और परोपकारी है। जब किसी व्यक्ति के पास धन न रहे और तब कोई उसके साथ खड़ा हो, वही सच्चा मित्र होता है। सुख और समृद्धि में तो सब साथ होते हैं – पर विपत्ति में जो साथ दे, वही मित्र कहलाता है।”
फिर उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई –
“मैं बुढ़ापे और मृत्यु के डर से मुक्त होने के लिए इस मोक्षमार्ग की ओर आया हूँ। मैंने पहले उन इच्छाओं को त्यागा, जो अशुभ की जड़ होती हैं, और फिर रोते हुए अपने प्रियजनों को भी छोड़ आया हूँ।
हे राजन्! मैं न तो साँपों से, न ही आकाश से गिरते वज्रों से और न ही आग और तूफान से इतना डरता हूँ, जितना मैं इंद्रिय विषयों (कामनाओं) से डरता हूँ। ये कामनाएँ अनित्य, धोखा देने वाली, और चोरी की तरह ज्ञान को चुरा लेने वाली होती हैं। इनकी आशा करने पर भी ये मन को मोह में डाल देती हैं, और अगर मन के भीतर घर कर जाएँ, तो फिर और भी बड़ा संकट है।”
“इंद्रिय विषय” का अर्थ होता है — वे विषय या वस्तुएँ जो हमारी पाँचों इंद्रियों (ज्ञानेंद्रियाँ) के माध्यम से अनुभव की जाती हैं। ये इंद्रियाँ हैं:
- आँख (दृष्टि) – देखने के विषय (जैसे रंग, आकार, दृश्य)
- कान (श्रवण) – सुनने के विषय (जैसे ध्वनि, संगीत)
- नाक (घ्राण) – सूँघने के विषय (जैसे सुगंध, दुर्गंध)
- जीभ (रसना) – स्वाद के विषय (जैसे मीठा, खट्टा)
- त्वचा (स्पर्श) – छूने के विषय (जैसे ठंडा, गर्म, चिकना, खुरदुरा)
इन इंद्रियों के माध्यम से जो भी अनुभव किया जाता है, उसे इंद्रिय विषय कहा जाता है। उदाहरण के लिए:
- एक सुंदर फूल को देखने का सुख – दृष्टि इंद्रिय विषय
- किसी मिठाई का स्वाद लेना – रसना इंद्रिय विषय
- कोई मधुर संगीत सुनना – श्रवण इंद्रिय विषय
भारतीय दर्शन, खासकर संख्या दर्शन और योग दर्शन में, इंद्रिय विषयों को मन की एकाग्रता और आत्म-संयम में बाधा माना गया है। वहां इन विषयों से विरक्ति (detachment) को आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग बताया गया है।
सिद्धार्थ ने समझाया –
“इस संसार में कोई भी कामना से कभी संतुष्ट नहीं होता। बड़े-बड़े राजाओं जैसे मान्धाता और नहुष को भी तृप्ति नहीं मिली। कामना मनुष्य को नाश की ओर ले जाती है। जैसे कौरव, वृष्णि, अंधक, और सुन्द-उपसुन्द सब काम के कारण ही विनाश को प्राप्त हुए।
हिरण मधुर गीतों से बहककर फंसते हैं, पतंगे रूप के कारण आग में जलकर मरते हैं, और मछली मांस की लालच में लोहे के कांटे को निगल लेती है। उसी प्रकार विषय-वासना का परिणाम भी विपत्ति ही है।
मैंने कल्याण के मार्ग को चुना है, मैं अब बहकने वाला नहीं हूँ। आपकी मित्रता का आदर करते हुए मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि आप मुझे मेरे पथ पर चलने दें।”
सिद्धार्थ ने और भी गहराई से कहा –
“मैं उस अवस्था को पाना चाहता हूँ जहाँ न जरा (बुढ़ापा), न भय, न रोग, न जन्म, न मृत्यु, और न ही कोई दुःख है। यही परम पुरुषार्थ है – जिसमें कर्म बार-बार नहीं करना पड़ता, और शांति स्थायी रहती है।
पुरुषार्थ का मतलब है — मानव जीवन में प्रयत्न या उद्देश्यपूर्ण प्रयास। परम पुरुषार्थ का अर्थ है — जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य या अंतिम लक्ष्य।
सरल उदाहरण:
व्यक्ति | प्रयास | उद्देश्य | परम पुरुषार्थ |
छात्र | पढ़ाई करता है | ज्ञान पाता है | आत्म-बोध की ओर बढ़ना |
कर्मयोगी | सेवा करता है | समाज का कल्याण | ईश्वर में लीन होना |
साधक | ध्यान करता है | मन की शांति | आत्मा का मोक्ष |
आपने जो कहा कि ‘अब युवा हो, वृद्धावस्था में संन्यास लेना’, यह भी निश्चित नहीं है। क्योंकि कई बार देखा गया है कि वृद्ध अधीर हो जाते हैं और युवा धैर्यवान हो जाते हैं। जब मृत्यु का समय निश्चित नहीं, तो कोई बुद्धिमान व्यक्ति मोक्ष की प्रतीक्षा क्यों करे?
आपने मुझसे कुल के अनुसार यज्ञ करने की बात कही, उन यज्ञों को मेरा नमस्कार, लेकिन मैं ऐसा सुख नहीं चाहता जो दूसरों को दुःख देकर मिलता हो। कोई भी व्यक्ति दूसरों को कष्ट देकर स्वयं सुखी नहीं हो सकता।”
अंत में सिद्धार्थ ने नम्रता से कहा –
“हे राजन्! अब मैं शीघ्र ही मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध अराड मुनि से मिलने जा रहा हूँ। आप कृपया मुझे क्षमा करें यदि मेरे शब्द कठोर लगे हों। मेरी आपके प्रति सद्भावना है।”राजा बिंबिसार भावविभोर होकर बोले –
“आप अपने लक्ष्य में सफल हों, यह मेरी शुभकामना है। और मेरे ऊपर भी कृपा बनाए रखें।” इस प्रकार सिद्धार्थ ने “वैसा ही हो” कहकर विष्वंतर आश्रम की ओर प्रस्थान किया और बिंबिसार भी अपने नगर गिरिव्रज को लौट गए। यह संवाद राजा और तपस्वी के बीच सच्चे आदान-प्रदान, त्याग, विवेक और धर्म के मार्ग पर दृढ़ता का प्रेरणादायक उदाहरण है।