सचेतन 2.115 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – जानकी की पुकार
सीता का संदेश: विरह और प्रतिज्ञा दोनों है
नमस्कार, दोस्तों! आपका स्वागत है हमारे आज के खास सचेतन के इस विचार के सत्र में, जहाँ हम लेकर आए हैं आपके लिए एक दिल छू लेने वाली कथा, “जानकी की पुकार”। आज हम सुनेंगे वीर हनुमान द्वारा देवी सीता के सन्देश को श्री राम तक पहुँचाने की गाथा।
देवी सीता रावण के अंतःपुर में बड़े दुखी और विपन्न अवस्था में थीं। उनके सिर पर एक मात्र वेणी सजी थी और वे दुखी होकर सदा श्री राम की चिंता में डूबी रहती थीं।
रावण के भयानक राक्षसियों के बीच फंसी हुई सीता जमीन पर सोतीं और जाड़े की ठंड में उनके शरीर की कान्ति भी फीकी पड़ चुकी थी, जैसे सर्दी में कमलिनी सूख जाती है।
हनुमान जी का संदेश: श्रीराम से सीता का संवाद
इसी दौरान, वीर हनुमान ने उन तक पहुँचकर न केवल उनका दुख देखा, बल्कि उन्होंने धीरे-धीरे अपने और श्री राम के बारे में बताकर उनके हृदय में विश्वास जगाया।
वीर हनुमान के साथ अपने प्रिय श्री राम की भक्ति से प्रेरित होकर, सीता ने उन्हें अपनी व्यथा कह सुनाई। उन्होंने श्री राम को अपनी कान्तिमती चूड़ामणि भी सौंपी, जिसे उन्होंने बड़े यत्न से संभाल के रखा था।
देवी सीता ने हनुमान से कहा कि वे इस चूड़ामणि को श्री राम को सौंप दें और उन्हें याद दिलाएँ कि किस तरह उन्होंने चित्रकूट में उन्हें तिलक लगाया था। हम सुनेंगे एक अनूठी कहानी – भगवान श्रीराम और माता सीता के बीच के संवाद को हनुमान जी के जब श्रीरामचन्द्रजी ने हनुमान जी से माता सीता के संदेश के बारे में पूछा, तो हनुमान जी ने उन्हें वह सब कुछ सुनाया जो माता सीता ने उनसे कहा था।
“पुरुषोत्तम! जानकी देवी ने एक घटना का वर्णन किया है जो चित्रकूट में घटित हुई थी। उस समय जब वे आपके साथ सुखपूर्वक सो रही थीं, एक कौए ने आकर उनकी छाती में चोंच मारी थी।” हनुमान जी ने आगे बताया कि किस तरह से यह घटना ने श्रीराम को क्रोधित कर दिया था और उन्होंने कौए को सबक सिखाने का निर्णय लिया। “महाबाहो! जब आपने देखा कि देवी की छाती से रक्त बह रहा है, तो आपने क्रोध में भरकर उस कौए का पीछा किया। आपने अपने ब्रह्मास्त्र से उस कौए को दण्डित किया।”
हनुमान जी के अनुसार, यह कौआ देवराज इंद्र का पुत्र था, जो पृथ्वी पर विचरण कर रहा था। इस प्रकार, श्रीराम की कृपा से, भले ही वह वध के योग्य था, लेकिन उन्होंने उसे क्षमा कर दिया और केवल उसकी एक आँख को नष्ट कर दिया।
यह कहानी हमें दिखाती है कि किस तरह भगवान श्रीराम ने अपने अस्त्र का प्रयोग करते हुए भी, दया का भाव नहीं छोड़ा। माता सीता ने इस घटना को याद दिलाकर उनसे रावण पर विजय पाने का आग्रह किया।
यह विचार हमें दिखाती है कि कैसे वीर हनुमान ने अपनी बुद्धिमत्ता और दृढ़ निश्चय से सीता का सन्देश श्री राम तक पहुँचाया। यह न केवल एक दूत का कार्य था, बल्कि एक भक्त का परम कर्तव्य भी था, जिसे उन्होंने अपने प्रभु के प्रति समर्पण के साथ पूरा किया।
यहाँ सीता का संदेश: विरह और प्रतिज्ञा दोनों है
हम एक गहन कहानी के माध्यम से जाएंगे, जो विरह की अग्नि में जलती एक नारी की दास्तान है—माता सीता की कहानी।
सीता जी का जीवन रावण के अंतःपुर में कैद होने के कारण कठिनाइयों से भरा पड़ा था। उनका दुबला-पतला शरीर और डर से भरी आँखें उनके दुःख की गवाही दे रही थीं। एक दिन, सीता जी ने हनुमान जी को एक संदेश दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि वे केवल एक महीने तक और जीवित रहेंगी। उसके बाद, अगर वे अब भी रावण के वश में होंगी, तो वे अपने प्राण त्याग देंगी।
सीता जी की यह बात सुनकर हनुमान जी का हृदय द्रवित हो उठा। वे तुरंत श्रीराम और लक्ष्मण के पास पहुंचे और उन्हें सीता जी का यह संदेश बताया।
राम और लक्ष्मण, सीता जी की इस निराशाजनक स्थिति को सुनकर व्याकुल हो उठे। उन्होंने तुरंत समुद्र पार करने और लंका पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।
श्रीरामचंद्रजी की अगुवाई में, वे सभी लंका की ओर कूच कर गए, ताकि एक निर्दोष और धर्मपरायण नारी को उसके दुखों से मुक्ति दिला सकें। यह कहानी हमें बताती है कि किस तरह से एक सच्चा नायक हमेशा धर्म के पथ पर चलता है और किसी भी कठिनाई का सामना करने से नहीं हिचकता।
तो यह थी आज की कहानी, जो हमें शक्ति, साहस और सच्चाई की राह दिखाती है। आशा करता हूँ कि आपको यह सत्र पसंद आया होगा। अगली बार हम लेकर आएंगे और भी रोचक कहानियाँ। तब तक के लिए, नमस्ते और धन्यवाद!