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हनुमान्जी ने वानप्रस्थी बनाने और समाधि लेने का विचार किया था हनुमान जी ने सोचा की यदि मैं सीता जी का पता लगाये बिना ही मैं लौट जाऊँ तो बहुत बड़ा प्रलय हो जाएगा। और फिर स्वयं के इस जीवन का नाश कर देने में बहुत-से दोष हैं। जो पुरुष जीवित रहता है, वह कभी-न-कभी अवश्य कल्याण का भागी होता है; अतः मैं इन प्राणों को धारण किये रहूँगा। जीवित रहने पर अभीष्ट वस्तु अथवा सुख की प्राप्ति अवश्यम्भावी है। इस तरह मन में अनेक प्रकार के दुःख धारण किये कपिकुञ्जर हनुमान जी शोक का पार न पा सके। तदनन्तर धैर्यवान् कपिश्रेष्ठ हनुमान् ने पराक्रम का सहारा लेकर सोचा-‘अथवा महाबली दशमुख रावण का ही वध क्यों न कर डालूँ। भले ही सीता का अपहरण हो गया हो, इस रावण को मार डालने से उस वैर का भरपूर बदला सध जायगा। अथवा इसे उठाकर समुद्र के ऊपर-ऊपर से ले जाऊँ और जैसे पशुपति (रुद्र या अग्नि)-को पशु अर्पित किया जाय, उसी प्रकार श्रीराम के हाथ में इसको सौंप दूं। इस प्रकार सीताजी को न पाकर वे चिन्ता में निमग्न हो गये। उनका मन सीता के ध्यान और शोक में डूब गया। फिर वे वानरवीर इस प्रकार विचार करने लगे –जब तक मैं यशस्विनी श्रीराम-पत्नी सीता का दर्शन न कर लूँगा, तब तक इस लंकापुरी में बारंबार उनकी खोज करता रहूँगा। यदि सम्पाति के कहने से भी मैं श्रीराम को यहाँ बुला ले आऊँ तो अपनी पत्नी को यहाँ न देखने पर श्रीरघुनाथजी समस्त वानरों को जलाकर भस्म कर देंगे। अतः यहीं नियमित आहार और इन्द्रियों के संयमपूर्वक निवास करूँगा। मेरे कारण वे समस्त नर और वानर नष्ट न हों। इधर यह बहुत बड़ी अशोकवाटिका है, इसके भीतर बड़े-बड़े वृक्ष हैं। इसमें मैंने अभीतक अनुसंधान नहीं किया है, अतः अब इसी में चलकर ढूँढंगा। राक्षसों के शोक को बढ़ाने वाला मैं यहाँ से वसु, रुद्र, आदित्य, अश्विनीकुमार और मरुद्गणों को नमस्कार करके अशोकवाटिका में चलूँगा। वहाँ समस्त राक्षसों को जीतकर जैसे तपस्वी को सिद्धि प्रदान की जाती है, इसी प्रकार श्रीरामचन्द्रजी के हाथ में इक्ष्वाकुकुल को आनन्दित करने वाली देवी सीता को सौंप दूंगा। इस प्रकार दो घड़ी तक सोच-विचारकर चिन्ता से शिथिल इन्द्रियवाले महाबाहु पवनकुमार हनुमान् सहसा उठकर खड़े हो गये (और देवताओं को नमस्कार करते हुए बोले-) ‘लक्ष्मणसहित श्रीराम को नमस्कार है। जनकनन्दिनी सीता देवी को भी नमस्कार है। रुद्र, इन्द्र, यम और वायु देवता को नमस्कार है तथा चन्द्रमा, अग्नि एवं मरुद्गणों को भी नमस्कार है।