सचेतन 115 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तन्नो रुद्र: प्रयोदयात्

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सचेतन 115 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तन्नो रुद्र: प्रयोदयात्

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आत्मा, परमात्मा या फिर स्वयं की खोज का अभ्यास ही रूद्र है 

भगवान शिव के पूर्व मुख का नाम तत्पुरुष है। तत्पुरुष का अर्थ है अपने आत्मा में स्थित रहना। पूर्वमुख का नाम ‘तत्पुरुष’ है। तत्पुरुष वायुतत्व के अधिपति है। तत्पुरुष तपोमूर्ति हैं।

भगवान शिव का ‘तत्पुरुष’ नामक तीसरा अवतार पीतवासा नाम के इक्कीसवें कल्प में हुआ । इसमें ब्रह्मा पीले वस्त्र, पीली माला, पीला चंदन धारण कर जब सृष्टि रचना के लिए व्यग्र होने लगे तब भगवान शंकर ने उन्हें ‘तत्पुरुष रूप’ में दर्शन देकर इस गायत्री-मन्त्र का उपदेश किया-

‘तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रयोदयात्।’

इसी मन्त्र के अद्भुत प्रभाव से ब्रह्मा सृष्टि की रचना में समर्थ हुए!!

हे त्रिकाल ज्ञाता महापुरुष देवों के देव महादेव, मुझे अपने अस्तित्व और आस्था में विलीन होने दे ।

इसका अर्थ है की हमारी विद्यमानता या मौजूदगी या सत्ता का भाव किसी परिघटना यानी एक आस्था का विषय है जो मानस विषय है परंतु इसका अन्वेषण (छानबीन) के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से अभिगम्य/बोधगम्य नहीं हो सकता है। 

अगर यह धार्मिक विश्वास, निष्ठा के साथ धारणा कर लें जिसका आलंबन हमारी श्रद्धा को क़ायम रखेगा और इससे हमारे मूल्यों का निर्माण हो सकेगा। 

हम प्रार्थना करते हैं की हे महादेव मुझे अद्वितीय ज्ञान और बुद्धि प्रदान करें, और मेरी बुद्धि में दिव्य प्राणों का संचार करें |

जब हम  मानस विषय यानी तार्किक बुद्धि का सहारा नहीं लेते हैं तो आपका मन आपके लिए एक खतरनाक गाइड बन जाता है। यह आपको ऐसी बातें बताता है, जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं होता। वहीं दूसरी ओर यह कई ऐसी चीजों की अनदेखी कर जाता है, जो ठीक आपके सामने मौजूद होती हैं। 

आप ध्यान में बिना तार्किक बुद्धि का सब कुछ देख सकते हैं। कुछ भी कर सकते हैं। यह बात आपको योग शरीर, ऊर्जा, सांस, भावनाओं और बोध के जरिए आध्यात्मिक प्रक्रिया का एक समग्र मार्ग खोल देता है। हम बिना बुद्धि का सहारा लिए अपने इस शरीर को मांस और रक्त के एक पिंड के तौर पर न देखकर इसे एक शक्तिशाली साधन या उपकरण बनाना सीखते हैं, जो किसी भी चीज को बड़ी खूबसूरती से महसूस कर सके व आंक सके।

आपने आप को शक्तिशाली साधन या उपकरण बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। भागमभाग लगा हुआ है। हम स्टार्ट लाइन पर खड़े रहकर फिनिश लाइन के छोर पर पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करते रहते हैं। हम अपने जीवनशैली को इस प्रकार बांध रखें हैं की जैसे कोई नाव एक समुद्र के किनारे बांध रखी है, और दूसरे किनारे पर पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। इस तरह से यह काम बहुत मुश्किल है। 

अगर आप रस्सी काट दें तो महज हवा आपको दूसरी ओर ले जा सकती है। अगर आप पूरी मेहनत से नाव चलाएंगे तो निश्चित तौर पर वहां पहुंच जाएंगे, लेकिन बिना रस्सी काटे अगर आप नाव खेते हैं तो यह एक अंतहीन और बेकार का काम है। यह वैसा ही होगा जैसे मानस विषय यानी तार्किक बुद्धि को त्याग कर अपने मन को एक खतरनाक गाइड लेना। 

तार्किक बुद्धि का रस्सी काटना और आपने लिए एक समग्र मार्ग खोलने के लिये आध्यात्मिक मार्ग की आवश्यकता है। 

आत्मा, परमात्मा या फिर स्वयं की खोज का अभ्यास ही रूद्र है जो एक प्रबुद्ध आत्मा जागा हुआ, होश में आया हुआ, जो चेत हुआ हो, पंडित, ज्ञानी, विकसित, प्रफुल्लित, खिला हुआ, सजीन बनने के लिये आपको तालमेल बिठाने के लिये बार बार किसी काम को करना का सोच देता है। आगर पूर्णता को प्राप्त करना है या फिर एक ही क्रिया का अवलंबन और अनुशीलन के लिए साधन बनाना हो तो रूद्र की आवृत्ति करनी होगी।

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