पंचतंत्र की कथा-03 : बंदर और लकड़ी का खूंटा
बिना सोचे-समझे, किसी और के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
एक घने जंगल में पिंगलक नाम का एक शेर और उसके के साथ दो गीदड़ हमेशा रहते थे—करटक और दमनक। ये दोनों शेर के सहायक थे और उसकी सेवा में लगे रहते थे। संजीवक बैल से पिंगलक की जब दोस्ती बढ़ती गई तो करटक ने साज़िश रचने की सोची, लेकिन दमनक ने उसकी बात नहीं मानी। यह “बंदर और लकड़ी का खूंटा” पंचतंत्र की एक प्रसिद्ध कहानी है जो करटक द्वारा दमनक को समझाने के लिए बताई जाती है। यह कहानी बताती है कि दूसरों के काम में बिना सोचे-समझे हस्तक्षेप करने का परिणाम अक्सर बुरा होता है। आइए इस कहानी को सुनते हैं:
बंदर और लकड़ी का खूंटा
किसी नगर में एक राजा ने एक बड़ा मंदिर बनवाने का निश्चय किया था। मंदिर का निर्माण कार्य जोरों पर था, और इसके लिए कई कारीगर और मजदूर दिन-रात मेहनत कर रहे थे। उनमें से कुछ बढ़ई भी थे, जो लकड़ी को काटने और उसे विभिन्न आकार देने का काम कर रहे थे।
एक दिन दोपहर के समय सभी कारीगर अपने भोजन के लिए विश्राम करने चले गए। उन्होंने अपना अधूरा काम वहीं छोड़ दिया था। उनमें से एक बड़ा लकड़ी का लठ्ठा था जिसे बीच से चीरकर उसमें एक खूंटा फंसा दिया गया था ताकि लकड़ी वापस जुड़ न जाए।
इसी बीच एक बंदर वहां आ पहुँचा। बंदर स्वभाव से बहुत ही चंचल और शरारती होते हैं। वह बंदर वहां इधर-उधर उछल-कूद करने लगा और उसे वह लकड़ी का लठ्ठा दिखाई दिया। लकड़ी के बीच में फंसे खूंटे ने उसकी जिज्ञासा को बढ़ा दिया। वह सोचने लगा कि यह खूंटा यहां क्यों है और इसे खींचने से क्या होगा।
अपनी जिज्ञासा पर काबू न रखते हुए बंदर लकड़ी के पास आया और उसने खूंटे को खींचना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में उसने खूंटा निकाल लिया। जैसे ही खूंटा बाहर निकला, लकड़ी के दोनों हिस्से तेजी से जुड़े और बंदर का पैर उनके बीच बुरी तरह फंस गया। दर्द के मारे बंदर जोर-जोर से चिल्लाने लगा, लेकिन उसकी मदद के लिए कोई नहीं था।
जब कारीगर वापस आए, तो उन्होंने देखा कि बंदर लकड़ी के बीच फंसा हुआ है और तड़प रहा है। बड़ी मुश्किल से उन्होंने लकड़ी को खोला और बंदर को आज़ाद किया। लेकिन तब तक बंदर बुरी तरह घायल हो चुका था।
कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बिना सोचे-समझे, बिना समझे किसी और के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। बंदर ने अपनी जिज्ञासा और शरारत के कारण लकड़ी का खूंटा खींचा और खुद को मुसीबत में डाल लिया। इसी प्रकार, अगर हम बिना सोचे-समझे किसी काम में दखल देते हैं, तो उसके बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
दमनक को यह कहानी सुनाकर करटक ने उसे यह समझाने की कोशिश की कि दूसरों के मामलों में हस्तक्षेप करना हानिकारक हो सकता है। इसलिए, हमें हमेशा सोच-समझकर ही किसी काम में दखल देना चाहिए और अपनी सीमाओं को समझना चाहिए।