सचेतन- बुद्धचरितम् 26 बुद्ध का तत्वज्ञान
दुखों से छुटकारा पाने के लिए
- चार आर्य सत्य (Four Noble Truths):
ये चार सत्य जीवन के दुख और उनके समाधान को बताते हैं —- दुःख:
जीवन में जन्म, बुढ़ापा, रोग, मृत्यु — सब दुःख हैं। इच्छाएँ पूरी न होना भी दुःख है। - दुःख का कारण (समुदय):
इस दुःख का कारण है — तृष्णा (इच्छाएँ, लालसा, लोभ)। हम सुख, सत्ता, और अमरता की लालसा करते हैं, इसी से दुःख पैदा होता है। - दुःख का निरोध:
जब तृष्णा को समाप्त कर दिया जाता है, तब दुःख भी समाप्त हो जाता है।
यानी दुःख से मुक्ति संभव है — इसे निर्वाण कहते हैं। - दुःख निरोध का मार्ग (मार्ग):
इस मुक्ति का रास्ता अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path) है, जिसे अपनाकर व्यक्ति दुखों से मुक्त हो सकता है।
- दुःख:
अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path):
यह आठ साधन हैं, जिनसे जीवन में शुद्धि और मुक्ति प्राप्त होती है:
- सम्यक दृष्टि (Right View):
संसार को जैसा है वैसा देखना — दुखों का स्वीकृत ज्ञान। - सम्यक संकल्प (Right Intention):
मन में अहिंसा, करुणा और त्याग की भावना रखना। - सम्यक वचन (Right Speech):
सत्य बोलना, प्रिय बोलना, झूठ और निंदा से बचना। - सम्यक कर्म (Right Action):
हिंसा, चोरी, और अनैतिक कर्मों से बचना। - सम्यक आजीविका (Right Livelihood):
ऐसा रोजगार चुनना जो किसी को हानि न पहुँचाए। - सम्यक प्रयास (Right Effort):
बुरे विचारों को रोकना और अच्छे विचारों को बढ़ाना। - सम्यक स्मृति (Right Mindfulness):
हमेशा सचेत रहना — शरीर, भावनाओं, मन और विचारों का ध्यान रखना। - सम्यक समाधि (Right Concentration):
ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र करना और गहराई से देखना।
सरल शब्दों में निष्कर्ष:
जन्म, बुढ़ापा और मृत्यु जैसे दुःख जीवन का स्वाभाविक हिस्सा हैं,
परंतु बुद्ध ने सिखाया कि इच्छाओं को त्यागकर, सदाचारी जीवन अपनाकर और गहरे ध्यान द्वारा आत्मा को शुद्ध करके, हम इन दुखों से मुक्ति पा सकते हैं।
यह मुक्ति ही निर्वाण है — जहाँ न जन्म है, न मृत्यु, केवल शांति है। 🌼