सचेतन 117 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- रूद्र, ब्रह्मांड की रचनात्मक ऊर्जा प्राप्त करने में हम सब की मदद करता है।
रूद्र, ब्रह्मांड की रचनात्मक ऊर्जा प्राप्त करने में हम सब की मदद करता है। इसका उपदेश ‘तत्पुरुष रूप’ में दर्शन देकर रुद्र गायत्री-मन्त्र का उपदेश भगवान शिव से स्वयं किया है – ‘तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रयोदयात्।’
रचनात्मक ऊर्जा और इस मन्त्र के अद्भुत प्रभाव से सृष्टि की रचनात्मक ऊर्जा के लिए आपको अपने अस्तित्व और आस्था में विलीन होना होगा।
इसका अर्थ है की हमारी मौजूदगी सिर्फ़ एक आस्था का विषय है, इस को तर्क वितर्क, अन्वेषण (छानबीन) के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से अभिगम्य/बोधगम्य नहीं हो सकता है। तार्किक बुद्धि का रस्सी काटना और आपने लिए एक समग्र मार्ग खोलने के लिये आध्यात्मिक मार्ग की आवश्यकता है।
तार्किक बुद्धि का रस्सी काटना यानी नोन जजमेंटल/गैर आलोचनात्मक होना किसी यह अभ्यास का विषय है आप एक पल में ही गैर आलोचनात्मक भावना अपने अंदर नहीं लासकते हैं। इस कार्य का अभ्यास ही रूद्र है जिसका नियमित अभ्यास से ब्रह्मांड की रचनात्मक ऊर्जा प्राप्त करने में हम सब की मदद करता है।किसी भी कर्म का निरन्तर अभ्यास पूरे ब्रह्मांड के लिए रुद्र यानी सबसे शक्तिशाली रूप का परिचय दिलाता है। रुद्र हर रूप, बल और तत्व को भस्म करने में सक्षम हैं।
रुद्र का सबसे पहला उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है, रुद्र मध्य क्षेत्र के देवता हैं। ऋग्वेद में तैंतीस देवताओं और तीन अलग-अलग क्षेत्र अर्थात् आकाशीय (द्युलोक) मध्यवर्ती क्षेत्र (अंतरिक्ष-लोक) और स्थलीय क्षेत्र (भूर-लोक) के बारे में चर्चा किया गया है।
रुद्र सूक्ष्म जगत, अंतरिक्ष के गोले, पृथ्वी और सूर्य के बीच के मध्य क्षेत्र का देवता है। रचनात्मक ऊर्जा ही सूक्ष्म जगत से जुड़ने का स्त्रोत बन सकता है। जब हम दिव्यता को पाने के लिये जीवन-सांस (प्राण-वायु) को स्थिर करने का अभ्यास करेंगे तो ही रुद्र के रचनात्मक ऊर्जा और जीवन के सिद्धांत के बीच अपने भौतिक तत्वों और बुद्धि का मध्यस्थ कर पायेंगे हैं।
प्राण वायु प्राण के पांच ऊर्जा उपखंडों में से एक है, और इसे सबसे महत्वपूर्ण में से एक माना जाता है। यह सिर में स्थित है और इसे मौलिक ऊर्जा माना जाता है। प्राण वायु शरीर में हवा से लेकर भोजन तक, इंद्रियों से लेकर विचारों तक हर चीज के स्वागत के लिए जिम्मेदार है।
प्राण वायु के बारे में जागरूक होने से व्यक्ति को योगाभ्यास से इष्टतम लाभ प्राप्त करने में मदद मिल सकती है क्योंकि पूरे शरीर में प्राण की गति योग का सार है।
वायु एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है “हवा” और प्राण वायु का अर्थ है “आगे बढ़ने वाली हवा।” हिंदू परंपरा में, पांच तत्वों – अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु (वायु) और ईथर – को वायु के रूप में दर्शाया गया है। प्राण वायु वायु तत्व से जुड़ी है और तीसरी/आध्यात्मिक आंख की ऊर्जा है। प्राण वायु हृदय केंद्र में स्थित है।
गायत्री-मन्त्र ‘तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रयोदयात्।’ के ज्ञान और जप से प्राण वायु का प्रतिनिधित्व भौतिक तत्वों और बुद्धि के बीच मध्यस्थ के लिये किया जाता है।