सचेतन 2.61: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – भयानक रूप से सामने आने वाली ही राक्षिसी होती है
सीता को भिन्न भिन्न राक्षसियों ने अपनी क्रूरता से उनको डराया और कहा यदि तुम मेरी कही हुई इस बात को नहीं मानोगी तो हम सब मिलकर तुम्हें इसी मुहूर्त में अपना आहार बना लेंगी।
किसी राक्षस के क्रूरता या हँसी या फिर से वीभत्स तरीके से अपने व्यवहार का प्रदर्शन करना। आपको यह प्रसंग उन सारे दृष्टिकोण को प्रकाशित कर सकता है की कभी कभी हमड़े जीवन में भी कोई हम सभी को डराया होगा। यही डर को हम पैशाचिक की परिभाषाएँ भी देते हैं। जब हमारे साथ कोई वीभत्स तरीके से यानी भयानक रूप से सामने आता है तो वही राक्षसी प्रवीर्ति कहलाता है।
सीता जी के सामने तदनन्तर दूसरी राक्षसी सामने आयी। उसके लम्बे लम्बे स्तन लटक रहे थे। उसका नाम विकटा था। वह कुपित हो मुक्का तानकर डाँटती हुई सीता से बोली – अत्यन्त खोटी बुद्धिवाली मिथिलेशकुमारी! अबतक हमलोगों ने अपने कोमल स्वभाववश तुम पर दया आ जाने के कारण तुम्हारी बहुत-सी अनुचित बातें सह ली हैं॥इतने पर भी तुम हमारी बात नहीं मानती हो। हमने तुम्हारे हित के लिये ही समयोचित सलाह दी थी। देखो, तुम्हें समुद्र के इस पार ले आया गया है, जहाँ पहुँचना दूसरों के लिये अत्यन्त कठिन है। यहाँ भी रावण के भयानक अन्तःपुर में तुम लाकर रखी गयी हो। मिथिलेशकुमारी! याद रखो, रावण के घर में कैद हो और हम-जैसी राक्षसियाँ तुम्हारी चौकसी कर रही हैं। मैथिलि! साक्षात् इन्द्र भी यहाँ तुम्हारी रक्षा करने में समर्थ नहीं हो सकते। अतः मेरा कहना मानो, मैं तुम्हारे हितकी बात बता रही हूँ। आँसू बहाने से कुछ होने-जाने वाला नहीं है। यह व्यर्थ का शोक त्याग दो। सदा छायी रहने वाली दीनता को दूर करके अपने हृदय में प्रसन्नता और उल्लास को स्थान दो। सीते! राक्षसराज रावण के साथ सुखपूर्वक क्रीडाविहार करो। भीरु! हम सभी स्त्रियाँ जानती हैं कि नारियों का यौवन टिकने वाला नहीं होता। जबतक तुम्हारा यौवन नहीं ढल जाता, तबतक सुख भोग लो। मदमत्त बना देने वाले नेत्रों से शोभा पाने वाली सुन्दरी! तुम राक्षसराज रावण के साथ लङ्का के रमणीय उद्यानों और पर्वतीय उपवनों में विहार करो। देवि! ऐसा करने से सहस्रों स्त्रियाँ सदा तुम्हारी आज्ञा के अधीन रहेंगी। महाराज रावण समस्त राक्षसों का भरण-पोषण करने वाले स्वामी हैं। तुम उन्हें अपना पति बना लो। मैथिलि! याद रखो, मैंने जो बात कही है, यदि उसका ठीक-ठीक पालन नहीं करोगी तो मैं अभी तुम्हारा कलेजा निकालकर खा जाऊँगी।
अब चण्डोदरी नामवाली राक्षसी की बारी आयी। उसकी दृष्टिसे ही क्रूरता टपकती थी। उसने विशाल त्रिशूल घुमाते हुए यह बात कही— महाराज रावण जब इसे हरकर ले आये थे, उस समय भय के मारे यह थर-थर काँप रही थी, जिससे इसके दोनों स्तन हिल रहे थे। उस दिन इस मृगशावकनयनी मानव-कन्या को देखकर मेरे हृदय में यह बड़ी भारी इच्छा जाग्रत् हुई—इसके जिगर, तिल्ली, विशाल वक्षःस्थल, हृदय, उसके आधार स्थान, अन्यान्य अंग तथा सिर को मैं खा जाऊँ। इस समय भी मेरा ऐसा ही विचार है.
तदनन्तर प्रघसा नामक राक्षसी बोल उठी—’फिर तो हमलोग इस क्रूर-हृदया सीता का गला घोंट दें; अब चुपचाप बैठे रहने की क्या आवश्यकता है? इसे मारकर महाराज को सूचना दे दी जाय कि वह मानव कन्या मर गयी। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस समाचार को सुनकर महाराज यह आज्ञा दे देंगे कि तुम सब लोग उसे खा जाओ।
तत्पश्चात् राक्षसी अजामुखी ने कहा—’मुझे तो व्यर्थ का वाद-विवाद अच्छा नहीं लगता। आओ, पहले इसे काटकर इसके बहुत-से टुकड़े कर डालें। वे सभी टुकड़े बराबर माप-तौल के होने चाहिये। फिर उन टुकड़ों को हमलोग आपस में बाँट लेंगी। साथ ही नाना प्रकार की पेय-सामग्री तथा फूल-माला आदि भी शीघ्र ही प्रचुर मात्रा में मँगा ली जाय।
तदनन्तर राक्षसी शूर्पणखा ने कहा—’अजामुखी ने जो बात कही है, वही मुझे भी अच्छी लगती है। समस्त शोकों को नष्ट कर देने वाली सुरा को भी शीघ्र मँगवा लो। उसके साथ मनुष्य के मांस का आस्वादन करके हम निकुम्भिला देवी के सामने नृत्य करेंगी’।
उन विकराल रूपवाली राक्षसियों के द्वारा इस प्रकार धमकायी जाने पर देवकन्या के समान सुन्दरी सीता धैर्य छोड़कर फूट-फूटकर रोने लगीं।