सचेतन 207: शिवपुराण- वायवीय संहिता – रुद्रदेव के विचार से विश्व का कल्याण संभव है।
एक कल्प १००० चतुर्युगों यानी चार अरब बत्तीस करोड़ मानव वर्ष का होता है
पिछले सचेतन के सत्र में हमारा प्रश्न करना की इस प्राण मय महायज्ञ की समाप्ति हो जाने पर अब आप लोग क्या करना चाहते हैं? और इसका उत्तर रुद्रदेव की प्राप्ति करना। रु’ का अर्थ ही ‘शब्द करना’ होता है – जो शब्द करता है, अथवा आप अभिलाषा से कुछ सोचते हैं, बोलते है या फिर उद्देश्य कर रहे हैं, यही रुद्र है।यह रुद्र नि:संदेह आपके अंदर विराजमान परमात्मा की आवाज़ है। ‘एक ही रुद्र है, दूसरा रुद्र नहीं है। यह रुद्र नि:संदेह परमात्मा ही है।
रुद्र आपके हर अवस्था का परम कारण हैं। उन्हें तर्क से नहीं जाना जा सकता। इसके लिए हमें नैमिषारण्य में यज्ञ का आयोजन करना होता है। यानी चेतना से एकाग्रता से ध्यान से विश्लेषण करना होता है।
सूत जी कहते हैं हे महाभाग! नि:संदेह परमात्मा ने रुद्र के रूप में हम सभी को इस पृथ्वी पर भेजा है और उपरमात्मा से यही आशीर्वाद और वचन मिला है को हमसभी को ज्ञान का लाभ हो और उससे जगत को कल्याण की प्राप्ति होती रहे। यानी आपके विचार से विश्व का कल्याण संभव है।
वायुदेवता बोले-महर्षियो! उन्नीसवें कल्पका नाम श्वेत लोहितकल्प समझना चाहिये। उसी कल्प में चतुर्मुख ब्रह्मा ने सृष्टि की कामना से तपस्या की। उनकी उस तीव्र तपस्या से संतुष्ट हो स्वयं उनके पिता देवाधिदेव महेश्वर ने उन्हें दर्शन दिया।
हम आपको कल्प के बारे में संछेप में बताते हैं सृष्टिक्रम और विकास की गणना के लिए कल्प वैदिक रीति का एक परम प्रसिद्ध मापदंड है। जैसे मानव की साधारण आयु सौ वर्ष है, वैसे ही सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की भी आयु सौ वर्ष मानी गई है, परंतु दोनों गणनाओं में बड़ा अन्तर है। ब्रह्मा का एक दिन ‘कल्प’ कहलाता है, उसके बाद प्रलय होता है। प्रलय ब्रह्मा की एक रात है और सृष्टि दिन होता है।
चारों युगों के एक चक्कर को चतुर्युगी कहते हैं। १‚००० चतुर्युगी का एक कल्प होता है। ब्रह्मा के एक मास में तीस कल्प होते हैं जिनके अलग-अलग नाम हैं, जैसे श्वेतवाराह कल्प, नीललोहित कल्प आदि। प्रत्येक कल्प के १४ भाग होते हैं और इन भागों को ‘मन्वंतर’ कहते हैं। इस प्रकार ब्रह्मा के आज तक ५० वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, ५१वें वर्ष का प्रथम कल्प अर्थात् श्वेतवाराह कल्प प्रारंभ हुआ है। इनके २७ चतुर्युगी बीत चुके हैं, २८ वें चतुर्युगी के भी तीन युग समाप्त हो गए हैं, चौथे अर्थात् कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है।
युगों की अवधि इस प्रकार है – सत्युग १७,२८,००० वर्ष; त्रेता १२,९६,००० वर्ष; द्वापर ८,६४,००० वर्ष और कलियुग ४,३२,००० वर्ष। अतएव एक कल्प १००० चतुर्युगों के बराबर यानी चार अरब बत्तीस करोड़ (4,32,00,00,000) मानव वर्ष का हुआ।
ब्रह्मा जी के आयु के प्रथम वर्ष के उन्नीसवें कल्पका नाम श्वेत लोहितकल्प था और अभी का ब्रह्मा जी के आयु का ५१वें वर्ष का प्रथम कल्प अर्थात् श्वेतवाराह कल्प प्रारंभ हुआ है।
ब्रह्मा जी ने आपने जीवन के प्रथम वर्ष में ही सृष्टि की कामना से तपस्या की थी। थोड़ा मनन और चिंतन करने का समय लीजिए की एक बच्चे का जन्म होता है और वह आपने जीवन के प्रथम वर्ष से ही सृष्टि की कामना का तपस्या करना प्रारंभ कर देता है यानी कोई अभीष्ट या हार्दिक इच्छा ज़ाहिर करता है उसको वो मनोरथ, या फिर वासना भी कह सकते हैं जिससे उसको आनंद की प्राप्ति हो जाये उसके लिए प्रयास करना चालू कर देता है।
यह हम कह सकते हैं को जीवन के प्रथम वर्ष से ही देवाधिदेव महेश्वर के दर्शन का इंतज़ार होना प्रारंभ हो जाता है। हम बचपन में ज़्यादा मन से शुद्धि होते हैं और उम्र के बढ़ने के साथ साथ मन को मालीनता बढ़ती जाती है। यहाँ से ही हमारे संस्कार की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।
अगर मनुष्य योनि में जन्म लिए हैं और हमारे शरीर में वायुदेवता शक्ति दे रहे हैं और यह रुद्र यानी परमशक्ति के करना हो रहा है और इस ज्ञान को हम समझ पा रहे हैं तो यही आपका शिव का रूप है जो जीवन के प्रथम वर्ष में ही प्रारंभ हो जाता है।