सचेतन, पंचतंत्र की कथा-49 : शाण्डिली द्वारा तिल-चूर्ण बेचने की कथा
“नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका ‘सचेतन सत्र’ में। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं पंचतंत्र के ‘मित्रलाभ’ (मित्र प्राप्ति) से ली गई एक और प्रेरणादायक कहानी – ‘शाण्डिली यानी ब्राह्मणी द्वारा तिल-चूर्ण बेचने की कथा’।
विष्णु शर्मा कहते हैं की -किसी स्थान में तिल-चूर्ण बेचने वाला बरसात के मौसम में व्रत करने के लिए मैंने एक ब्राह्मण से निवेदन किया कि वह मुझे रहने के लिए स्थान दे। मेरी बात मानकर उस ब्राह्मण ने मेरी सेवा की और देवता की पूजा करता हुआ मुझे सुखपूर्वक रहने की जगह दी। एक दिन सबेरे जागकर मैंने ध्यानपूर्वक ब्राह्मण और ब्राह्मणी के बीच का संवाद सुना। ब्राह्मण ने कहा, “ब्राह्मणी, आज दक्षिणायन संक्रांति का दिन है, जो अनंत पुण्य देने वाला है। मैं दान करने के लिए दूसरे गांव जाऊँगा। तुम भी भगवान सूर्य के निमित्त किसी ब्राह्मण को भोजन दे देना।”
ब्राह्मणी ने उसे कठोर शब्दों में जवाब दिया, “तुम दरिद्र हो, तुम्हारे पास खुद भोजन नहीं है, फिर तुम दूसरों से भोजन देने की बात कर रहे हो? तुम्हारी बातों में कोई लाज नहीं आती। तुम्हारे साथ रहने के बाद मैंने कभी सुख नहीं पाया। न मिठाइयों का स्वाद चखा, न हाथ-पैर और गले के आभूषण ही मुझे मिले।”
यह सुनकर डरा हुआ ब्राह्मण बोला, “ब्राह्मणी, तुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए। कहा गया है –
‘एक कौर में से आधा कौर मांगने वालों को क्यों न दिया जाय?’
‘धन तो किसे कहां मिलने वाला है, यह कभी नहीं कहा जा सकता।’
‘धनवान व्यक्ति जो दान करता है, उसका फल गरीब व्यक्ति एक कौड़ी देकर भी प्राप्त कर सकता है।’
‘जो दान करता है, वह छोटा भी सेवा के लायक है, लेकिन जो कंजूस होता है, चाहे वह कितना भी धनवान क्यों न हो, वह सेवा के लायक नहीं होता।’
‘मीठे पानी से भरा हुआ कुंआ लोगों के प्रिय होते हैं, लेकिन समुद्र अपने विशालता के बावजूद किसी के काम का नहीं होता।’
ब्राह्मणी चुप हो गई, लेकिन ब्राह्मण ने और भी कहा,
‘यदि किसी ने दान किया है, लेकिन उससे कोई महिमा नहीं मिली, तो उसे राज-राज का नाम देना क्या मायने रखता है?’
‘जो कुबेर निधियों के रक्षक होते हैं, उन्हें विद्वान महेश्वर नहीं कहते।’
‘जो हाथी सदा दान करने वाला होता है, वह चाहे थोडा कमजोर हो जाए, फिर भी उसकी प्रशंसा होती है, जबकि शरीर से मजबूत होते हुए भी यदि कोई दान नहीं करता, तो उसे गधा कहा जाता है।’
‘सिद्ध और सुवृत्त घड़ा भी दान के नीचे रहता है, लेकिन कानी-कुबड़ी ककड़ी हमेशा दान के लिए ऊपर रहती है।’
‘बादल पानी देता है, जिससे लोगों को खुशी होती है, लेकिन सूर्य अपनी किरण बढ़ाता है, फिर भी उसकी कोई प्रशंसा नहीं होती।’
‘याद रखो, जो तुच्छ वस्तु देने वाले होते हैं, वे प्रिय हो जाते हैं। लेकिन यदि मित्र अपने हाथ बढ़ाते हैं, तो कोई उसे नहीं देखता।’
ब्राह्मणी अब चुप हो गई। ब्राह्मण ने फिर कहा, ‘गरीब आदमी को भी समय पर थोड़ी-थोड़ी चीजें देना चाहिए। दान लेने वाला सुपात्र होना चाहिए, और दान देते समय श्रद्धा और सही समय का ध्यान रखना चाहिए।’
ब्राह्मणी ने पूछा, “कैसे?” ब्राह्मण ने उत्तर दिया, “दान का फल हमेशा उस व्यक्ति को मिलता है, जो सही समय पर और सही स्थान पर दान करता है।” और भील, सूअर और सियार की कथा में इसे समझेंगे।
“अगले सत्र में फिर मिलेंगे पंचतंत्र की एक और प्रेरणादायक कहानी के साथ। धन्यवाद!”