सचेतन 238: शिवपुराण- वायवीय संहिता – शिव आपके प्राकृतिक गुण में हैं 

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आप शिव तक कैसे पहुँच पाएंगे? 

यह प्रमाणिकता है की हम सभी जितने भी प्रकार की सिद्धियां जीवन में पाना चाहते  हैं, वे शिवलिंग की स्थापना करने से तत्काल पा सकते हैं। जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो इसका अर्थ है शून्य, यानी ‘शिव’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो नहीं है’।

लिंग से तात्पर्य है की जो सक्रिय है, कार्य को करने वाला है यानी कर्ता वह कोई भी हो सकता है चाहे वह स्त्री हो पुरुष हो नपुंसक है या फिर कोई निर्जीव ही क्यों ना हो। लिंग शब्द का शाब्दिक अर्थ है-‘चिह्न’। आप अगर लिंग स्वरूप हैं तो आप एक कर्ता मात्र हैं यानी उस कर्म का प्रतिकात्मक चिन्ह मात्र हैं। शिवलिंग यानी शून्य से बना और विकसित हुआ प्रतीक। 

एक बार अपने शून्य होने की सहनशीलता को सक्षम करके देखिए आपको लगेगा की आपका हरेक कर्म इस सृष्टि में शून्यता से ही प्रारंभ होता है। हम यूँ कहें की आप जब अपने अस्तित्व का आधार शून्य मानते हैं और यह समझ कर कर्म करते हैं तब आप शिव के समान हैं। 

चलिए आप अनजान शहर में जाकर आप अगर भूल जायें की आप कौन हैं? वैसे तो ‘मैं’ को भूलना कठिन होता है, फिर भी आप अपने होने का अहंकार अपने शरीर और पद और रुतवे को भूल जाये तो क्या होगा? और ऐसा आप कर लेते हैं तो-

शायद आपको कभी भी कहीं भी किसी भी समय अपना आपा खोने की ज़रूरत ही नहीं होगी। किसी से कोई राग द्वेष नहीं होगा। कभी दंभ यानी अपनी प्रतिष्ठा के लिए झूठा आडंबर या पाखंड करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। कोई आपके अहम् पर कभी भी प्रहार भी नहीं कर सकेगा। यह स्थिति आप अपने में शून्य के समान है। और यही शिव को पाने की स्थिति है। 

आपका शून्य होना ही आपका प्राकृतिक गुण है क्योंकि आप तभी ही स्वयं को समझ सकने में सक्षम होते हैं। आपकी स्थिरता ही आपको सभी चीजों का दर्शन करा सकता है। सच मानिए तो इस संपूर्ण ब्रह्मांड का एक विराट शून्यता का होना ही  मौलिक गुण है और इस संपूर्ण ब्रम्हांड आपने भीतर समाहित करना। इस संपूर्ण ब्रह्मांड में मौजूद रहकर शून्यता को अपने भीतर समेट कर रखना ही शिव है। 

वैसे बाहर की दुनियाँ हलचल से भारी हुई है। आपके आत्म-सम्मान को हर वक़्त कोई ना कोई टटोलता ज़रूर है। बाहर की दुनियाँ आपके स्वयं के मूल्य, आपकी क्षमताओं या आपकी नैतिकता से खेल खेलता है और आपको डगमगाने को कोशिश करता है और आप डगमग भी हो जाते हैं। यह स्थिति शिव से जीव होने के जैसा है।  

यहाँ तक की कभी कभी आप अपने आप पर भी विश्वास नहीं करने लगते हैं। कभी ऐसा होता है की आपके लिए अपने स्वयं के ऊपर विश्वास करना की मैं योग्य हूं, यह समझना पाना भी बहुत मुश्किल होता है। 

ख़ैर जीवन में तो विजय, निराशा, गर्व और शर्म जैसी भावनात्मक स्थितियां भी शामिल हैं। यह स्थित आपके आत्म-अवधारणा को ऐसे जकड़ रखा है की आप जब  स्वयं के बारे में सोचते हैं तो अपना मूल्यांकन करने लगते हैं तब आपकी स्थिति तो बाहर के हलचल से भी बड़ा तूफ़ान आपके भीतर खड़ा कर देता है। 

फिर आप शिव तक कैसे पहुँच पाएंगे? आप शून्य हो नहीं सकते स्थिरता अपने आप में ला नहीं सकते हर वक़्त आपका आत्म-सम्मान, स्वयं का सकारात्मक या नकारात्मक मूल्यांकन आपके सामने खड़ा रहता है। इन सभी परिस्थिति और जीवन के हर दशा में ज़रूरत है शिव को प्राप्त करना यानी शून्य का भाव को बनाये रखना।  

अगर आप ब्रह्मांड को देखे तो आकाशगंगाएं हैं जहां केवल छोटी-मोटी गतिविधियां हैं, जो किसी फुहार की तरह हैं। उसके अलावा सब एक खालीपन है। इसीलिए तो हमारी धरती, हमारे आसपास  की जगह, हमारा घर, दफ्तर, मेट्रो स्टेशन हर दिन एक ही जगह एक ही गंतव्य पर दिखता है और खोजने पर मिल भी जाता है। यह इस प्रकृति की गुणवत्ता है। खड़े रहने या सहने की ताकत और एक दृढ़ता का होना है और इसे ही  शिव के नाम से जान सकते हैं। 

सारा संसार लिंग का ही रूप है यानी एक प्रतीकात्मक चिह्न है इसलिए इसकी प्रतिष्ठा से सबकी प्रतिष्ठा हो जाती है। शिवलिंग आपका वह गुण जो आपको संतुलन देता है। एक स्थिर गति की स्थिति आपके अंदर लाता है की आप परेशान होने पर भी शिव यानी शून्यता की ऐसी ताकत या एक ऐसा क्षण विकसित कर पाने में कुशल हो जाते हैं और यह शून्यता या स्थिर होने का भाव, एक ठहराव, दृढ़ता, आपकी मजबूती और स्थायित्व को बना कर रखती है जिसके कारण ही आप अपनी मूल स्थिति को बहाल करते हैं और जीवन में फिर से चल पड़ते हैं।

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