सचेतन- 1: चेतना क्या है? Consciousness
चेतना का अर्थ है — जागरूकता, यानी अपने विचारों, भावनाओं, शरीर और आसपास की दुनिया के प्रति सचेत होना।
🌼 सरल शब्दों में:
जब आप जानते हैं कि आप कौन हैं, कहाँ हैं, क्या सोच रहे हैं, और क्या महसूस कर रहे हैं — तो आप चेतन हैं।
🌟 उदाहरण:
- जब आप सूरज की रोशनी महसूस करते हैं — यह चेतना है।
- जब आप दुखी या खुश होते हैं — यह भी चेतना है।
- जब आप सोचते हैं, “मैं हूँ” — यह चेतना की पहचान है।
🧠 वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
चेतना मस्तिष्क की वह अवस्था है जब व्यक्ति जाग्रत, सोचने, और निर्णय लेने में सक्षम होता है।
🕉️ उपनिषदों के अनुसार:
चेतना ही आत्मा का स्वरूप है। यह केवल शरीर की क्रिया नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय शक्ति (ब्रह्म) से जुड़ी हुई ऊर्जा है।
🔁 चेतना की अवस्थाएँ:
- जाग्रत अवस्था (Awake)
- सपनों की अवस्था (Dreaming)
- गहरी नींद (Deep Sleep)
- तुरीय अवस्था (चौथी अवस्था – ब्रह्म चेतना)
1. जाग्रत अवस्था (Awake / जाग्रत) – “वैश्वानर”
- यह वह अवस्था है जब हम बाहरी दुनिया को देख, सुन, छू, और अनुभव कर रहे होते हैं।
- इसमें हम इंद्रियों और मन के द्वारा जागरूक रहते हैं।
- जैसे अभी आप पढ़ रहे हैं, सोच रहे हैं — आप जाग्रत अवस्था में हैं।
🪔 उपनिषद इसे “वैश्वानर” कहते हैं — जो बाहर की दुनिया को जानता है।
2. सपनों की अवस्था (Dreaming / स्वप्न) – “तैजस”
- यह नींद की वह स्थिति है जब शरीर सो रहा होता है, लेकिन मन सक्रिय रहता है, और हम सपने देखते हैं।
- इसमें हम आंतरिक अनुभवों और विचारों से जुड़े रहते हैं।
🪔 उपनिषद इसे “तैजस” कहते हैं — जो केवल मन से अनुभव करता है।
3. गहरी नींद (Deep Sleep / सुषुप्ति) – “प्राज्ञ”
- इसमें न कोई सपना होता है, न कोई विचार — केवल पूर्ण विश्रांति होती है।
- यह अवस्था शुद्ध अस्तित्व की अवस्था मानी जाती है, पर इसमें हमें कोई अनुभव नहीं होता।
🪔 उपनिषद में इसे “प्राज्ञ” कहा गया है — जो शांति और अज्ञान में स्थित है।
4. तुरीय अवस्था (Turiya / चौथी अवस्था) – “ब्रह्म चेतना”
- यह सभी तीनों अवस्थाओं से परे होती है।
- इसमें व्यक्ति आत्मा और ब्रह्म की एकता का अनुभव करता है।
- यह निर्विकल्प समाधि, शुद्ध चेतना, और पूर्ण आत्मबोध की अवस्था है।
🪔 उपनिषद इस अवस्था को “तुरीय” कहते हैं — जो शुद्ध आत्मा की स्थिति है, जहाँ न जागरण है, न सपना, न नींद — केवल चैतन्य।
इन चार अवस्थाओं का अध्ययन आत्मबोध की ओर ले जाता है। उपनिषद कहते हैं कि “जो तुरीय को जानता है, वही ब्रह्म को जानता है।”
ब्रह्म को जानना — यह उपनिषदों और वेदांत का परम लक्ष्य है। इसे “ब्रह्म-ज्ञान” या “आत्म-साक्षात्कार” भी कहा जाता है। यह जानना केवल कोई सूचना पाना नहीं, बल्कि अनुभव करना है कि मैं कौन हूँ, मेरा स्वरूप क्या है, और मैं ब्रह्म से अलग नहीं हूँ।
🌼 ब्रह्म को जानना ही चेतना का आधार है
ब्रह्म का अर्थ है — अनंत, सर्वव्यापक, अजन्मा (जिसका कोई आरंभ नहीं), और निराकार चेतना, जिससे पूरी सृष्टि उत्पन्न होती है, जिसमें सब कुछ स्थित रहता है, और अंत में उसी में सब कुछ विलीन हो जाता है।
यह कोई वस्तु या व्यक्ति नहीं, बल्कि परम सत्य है — जो सदा है, अटल है, और परिवर्तन से परे है। ब्रह्म वह अदृश्य शक्ति है जो सब कुछ में है, सब कुछ से परे है, और सब कुछ उसी से आता है।
यह कोई व्यक्ति, वस्तु या देवता नहीं, बल्कि परम सत्य (Ultimate Reality) है।
परम सत्य का अर्थ है — अंतिम, अपरिवर्तनीय और शाश्वत सत्य। यह वह सत्य है जो समय, स्थान, रूप और कारण से परे है। यह न तो बदलता है, न मिटता है, और न ही किसी पर निर्भर होता है।
ब्रह्म को ही परम सत्य कहा गया है।
✍️ उपनिषद कहते हैं:
“सत्यम् ज्ञानम् अनन्तम् ब्रह्म”
— ब्रह्म सत्य है, ज्ञान है और अनंत है।
(— तैत्तिरीय उपनिषद)
📘 परम सत्य के लक्षण:
- सत् – जो हमेशा है, कभी नष्ट नहीं होता
- चित् – जो चेतन है, ज्ञानस्वरूप है
- आनंद – जो शुद्ध सुख है, जो भीतर से मिलता है
🔍 स्थूल और सूक्ष्म में अंतर:
- जो दिखाई देता है, वह सापेक्ष सत्य (अपेक्षिक) हो सकता है — जैसे शरीर, नाम, रूप, स्थिति।
- परंतु जो सभी रूपों के पीछे है, वह परम सत्य है — वह है आत्मा या ब्रह्म।
जैसे:
- सपने में सब कुछ सच लगता है, लेकिन जागने पर समझ आता है कि वह असली नहीं था।
- उसी तरह यह संसार भी बदलता रहता है, लेकिन जो कभी नहीं बदलता, वही परम सत्य है।
🧘♂️ परम सत्य को जानना क्यों ज़रूरी है?
- क्योंकि उसी को जानने से मोक्ष (मुक्ति) मिलती है।
- उसी से शांति, ज्ञान और सच्चा सुख प्राप्त होता है।
वही आत्मा का वास्तविक स्वरूप है।