सचेतन :18. श्रीशिवपुराण- वेदार्थ के ज्ञान से श्रवण, कीर्तन तथा मनन की साधना संभव है।
सचेतन :18. श्रीशिवपुराण- वेदार्थ के ज्ञान से श्रवण, कीर्तन तथा मनन की साधना संभव है।
Sachetan: With the knowledge of Vedartha, it is possible to listen, chant and practice the mind.
विद्येश्वरसंहिता
वेदार्थ ज्ञान में सहायक शास्त्र को ही वेदांग कहा जाता है। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरुक्त – ये छः वेदांग है।
शिक्षा – स्वर एवं वर्ण आदि के अविकल यथास्थिति विशुद्ध उच्चारण, रक्षा के उद्देश्य किया जाना ही शिक्षा है।
कल्प – कार्य के अनुसार प्रयोग के विचार और नियम के सूत्र जिसमें करना तीन शाखाएं हैं- श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र।
व्याकरण – शब्दों का यथार्थ ज्ञान हो सके इसके लिए प्रकृति (शब्द मूल) और प्रत्यय (पदों का निर्माण ) कर के शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध करना है।
निरुक्त – शब्द प्रयोग का अर्थपूर्ण निश्चयात्मक और निःशेष रूप से (जिसमें कुछ शेष न हो/ समूचा) जो कथित उसका उल्लेख करना।
कल्प – कार्य के अनुसार प्रयोग के विचार और नियम के सूत्र जिसमें करना तीन शाखाएं हैं- श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र।
ज्योतिष – यज्ञों और अनुष्ठानों के समय का ज्ञान होना।
छन्द – समुचित लयबद्ध पाठ की विधि।
कानसे भगवान के नाम-गुण और लीलाओं का श्रवण, वाणी द्वारा उनका कीर्तन तथा मनके द्वारा उसका मनन-इन तीनों को शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरुक्त – ये छः वेदांग है के द्वारा महान् साधना करना। तात्पर्य यह कि महेश्वर का श्रवण, कीर्तन और मनन करना चाहिए- यह श्रुतिका वाक्य हम सबके लिये प्रमाणभूत है । इसी साधन से सम्पूर्ण मनोरथ की सिद्धि में लगे हुए आप लोग परम साध्य को प्राप्त हों। लोग प्रत्यक्ष वस्तु को आँख से देखकर उसमें प्रवृत्त होते हैं। परंतु जिस वस्तु का कहीं भी प्रत्यक्ष दर्शन नहीं होता, उसे श्रवणेन्द्रिय द्वारा चेष्टा करता है। व्याकरण के यथार्थ ज्ञान से प्रकृति (शब्द मूल) और प्रत्यय (पदों का निर्माण ), शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों के श्रवण स्थिति का बोध होता है।
अतः पहला साधन श्रवण ही है उसके द्वारा गुरु के मुख से तत्वों को सुनकर श्रेष्ठ बुद्धि वाला विद्वान् पुरुष अन्य साधन – कीर्तन एवं मनन की सिद्धि करें। गुरु से शिक्षा लेकर स्वर एवं वर्ण आदि के विशुद्ध उच्चारण करना ही शिक्षा है। क्रमशः मनापर्यंत इस साधना की अच्छी तरह साधना कर लेने पर उसके द्वारा सालोक्य आदि के क्रम से धीरे-धीरे भगवान शिव का संयोग प्राप्त होता है। निरुक्त होकर शब्द प्रयोग का अर्थपूर्ण निश्चयात्मक और निःशेष रूप से (जिसमें कुछ शेष न हो/ समूचा) जो कथित उसका उल्लेख समझना और करना।
कल्प के ज्ञान से यानी श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र से पहले सारे अंगों के रोग नष्ट हो जाते हैं। फिर सब प्रकार का लौकिक आनन्द भी विलीन हो जाता है।
भगवान शंकर की पूजा, उनके नामों का जप तथा उनके गुण, रूप, विलास और नामों की युक्ति परायण चित्तके द्वारा जो निरंतर परिशोधन या चिंतन होता है, उसको मनन कहा गया है; वह महेश्वर की कृपा दृष्टि से उपलब्ध होता है। उसे समस्त श्रेष्ठ साधनों में प्रधान या प्रमुख कहा गया है।छन्द से समुचित लयबद्ध होकर नामों का जप पाठ करना चाहिए।