सचेतन :24. श्री शिव पुराण- समुद्र मंथन – शिवरात्रि की कथा
सचेतन :24. श्री शिव पुराण- समुद्र मंथन – शिवरात्रि की कथा
Sachetan:Churning of the Ocean – The Story of Shivaratri.
विद्येश्वर संहिता
भक्ति मार्ग सरल है और निराकार की साधना कठिन है। जो अव्यक्त और निराकार होता है, उसका आप अनुभव नहीं कर सकते। उसमें आप सिर्फ विश्वास कर सकते हैं। चाहे आप निराकार में विश्वास करते हों, फिर भी जो नहीं है, उसके प्रति गहरी भक्ति और प्रेम को विकसित करते हुए उसे बनाए रखना आपके लिए बहुत मुश्किल होगा। जो है, उसकी भक्ति करना आपके लिए ज्यादा आसान है। इसके साथ ही, वह कहते हैं, ‘अगर कोई निरंतर निराकार की भक्ति कर सकता है, तो वह भी मुझे पा सकता है।’ जब वह ‘मैं’ कहते हैं, तो वह किसी व्यक्ति के रूप में अपनी बात नहीं करते हैं, वह उस भक्ति के उस आयाम के बारे में बात करते हैं जिसमें साकार और निराकार और भक्त की आंतरिक या भीतरी स्थिति है।
दोनों शामिल होते हैं। शिवपुराण में भगवान शिव के पूजन के बारे में बताया गया है। भक्तिपूर्वक भगवान शिव की पूजा का उत्सव ‘शिवरात्रि’ है। और इस उत्सव के लिए साकार और निराकार रूप दोनों की भावना करनी पड़ती है।
महाशिवरात्रि भारतीयों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। माघ फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में ‘हेराथ’ या ‘हेरथ’ भी कहा जाता हैं।
महाशिवरात्रि से सम्बन्धित कई पौराणिक कथाएँ है: जिसमें समुद्र मंथन और शिकारी कथा बहुत ही प्रचलित है। आज हम समुद्र मंथन की कथा कहते हैं-
समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित था, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कण्ठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित हो उठे थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव ‘नीलकंठ’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिन्तन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनन्द लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाये। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है।कहते हैं कि भगवान शिव द्वारा विष का पान करते समय उसकी कुछ बूँदें छलककर भूमि पर गिर पड़े जिसे सर्प, बिच्छू और अन्य विषैले जीवों ने ग्रहण कर लिया।
सूतजी कहते हैं की जो शिवरात्रि के दिन-रात एवं जितेन्द्रिय रहकर अपनी शक्ति के निराहार अनुसार निश्चल भाव से मेरी यथोचित पूजा करेगा, उसको मिलने वाले फल का वर्णन सुनो। एक वर्ष तक निरन्तर मेरी पूजा करने पर जो फल मिलता है, वह सारा फल केवल शिवरात्रि को मेरा पूजन करने से मनुष्य तत्काल प्राप्त कर लेता है। जैसे पूर्ण चन्द्रमा का उदय समुद्र की वृद्धि का अवसर है, उसी प्रकार महाशिवरात्रि मेरे धर्म की वृद्धि का समय है। इस तिथि में मेरी स्थापना आदिका मंगलमय उत्सव होना चाहिये। पहले मैं जब ‘ज्योतिर्मय स्तम्भ रूप से प्रकट हुआ था, वह समय मार्गशीर्ष मास में आर्द्रा नक्षत्र से युक्त पूर्णमासी या प्रतिपदा है। जो पुरुष मार्गशीर्ष मास में आर्द्रा नक्षत्र होनेपर पार्वती सहित मेरा दर्शन करता है अथवा मेरी मूर्ति या लिंगकी ही झाँकी करता है, वह मेरे लिये कार्तिकेय से भी अधिक प्रिय है। उस शुभ दिनको मेरे दर्शन मात्र से पूरा फल प्राप्त होता है। यदि दर्शन के साथ- साथ मेरा पूजन भी किया जाय तो इतना अधिक फल प्राप्त होता है कि उसका वाणीद्वारा वर्णन नहीं हो सकता।
हमारे जीवन में भी यह समुद्र मंथन बहुत बार होता है। जरा सोचें की घर में आपकी माँ ने कितनी बार ख़ुद को कष्ट में रख कर आपको सुख दिया है। आपके पिता ने कितनी बार आपको वो वस्तु दिलाये हैं जिसका भुगतान उनके जीवन में असहज रहा होगा।
आगर हम मन को मथने से पहले बुरे विचार निकालत दें और बुराइयों को अंदर नहीं उतरने दें तो हम सिर्फ़ अपना जीवन ही नहीं बल्कि सभी के जीवन में आनंद ला सकते हैं।