सचेतन- 4: चिंतन और संशय निवारण: चेतना का मार्ग
संशय का अर्थ होता है — संदेह या शंका। लेकिन यह केवल नकारात्मक भावना नहीं है। भारतीय दर्शन में संशय को चिंतन का पहला चरण माना गया है।
🌿 संशय – आत्मज्ञान की पहली सीढ़ी
संशय वही अवस्था है जब मन प्रश्न करता है:
- मैं कौन हूँ?
- क्या यह जीवन केवल खाने, सोने और मरने तक ही सीमित है?
- क्या आत्मा है? क्या ईश्वर है? मृत्यु के बाद क्या होता है?
इन्हीं प्रश्नों से मनन की शुरुआत होती है। संशय हमारी चेतना को जगाता है।
🧠 उदाहरण: अर्जुन का संशय
महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन ने अपने ही सगे-सम्बंधियों को सामने खड़ा देखा, तो वह युद्ध करने को तैयार नहीं हुआ। उसके मन में गहरे संशय उत्पन्न हुए—
“क्या अपने ही परिवारजनों को मारना धर्म है?”
“क्या मैं सही कर रहा हूँ?”
तब श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया। यही संशय से समाधान का मार्ग है।
🌱 संशय क्यों आवश्यक है?
संशय वह पहला स्पर्श है, जो मन को जगा देता है।
जब हम किसी बात पर शंका करते हैं, तो वह शंका हमें सोचने को प्रेरित करती है।
🔹 संशय से विचार जन्म लेता है।
जब हम पूछते हैं — क्या यह सत्य है?, तब सोच शुरू होती है।
🔹 विचार से विवेक उत्पन्न होता है।
विचार करते-करते हम सही-गलत, शुभ-अशुभ का निर्णय करने लगते हैं।
🔹 विवेक से निर्णय आता है।
यह निर्णय केवल बाह्य नहीं होता, यह अंतरात्मा की आवाज़ पर आधारित होता है।
🔹 और वही सही निर्णय, हमें सत्य के मार्ग पर ले जाता है।
🔆 सार:
संशय नकारात्मक नहीं, एक ज्योति है — जो विचार, विवेक और अंततः सत्य की ओर ले जाती है।
जिसने सही तरीके से संशय किया, वह अंधविश्वास से मुक्त हुआ।
जिसने संशय से नहीं डरा, वह ज्ञान के द्वार तक पहुँचा।
🌿 नचिकेता का मनन – सत्य की खोज में बालक
🌿 बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से ब्राह्मण बालक नचिकेता ने देखा कि उसका पिता वृद्ध गायों को यज्ञ में दान कर रहा है। उसने जिज्ञासावश पूछा,
“पिताजी, क्या ऐसा दान सही है? क्या इससे यज्ञ सफल होगा?”
पिता ने क्रोध में आकर कह दिया,
“तुझे ही मैं मृत्यु को दान देता हूँ!”
यह वाक्य बालक नचिकेता के लिए वचन बन गया। वह बिना भय के यमराज के लोक में पहुँच गया।
यमराज ने तीन वर मांगने को कहा।
पहला वर – नचिकेता ने अपने पिता के क्रोध की शांति और घर वापसी की बात की।
दूसरा वर – उसने स्वर्ग का रहस्य जानना चाहा।
और तीसरे वर में उसने माँगा – “मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है?”
यह प्रश्न यमराज को भी विचलित कर गया।
उन्होंने कई लालच दिए, सोने के रथ, सुंदर अप्सराएं, लंबी उम्र…
लेकिन नचिकेता अडिग रहा –
“हे यमदेव, ये सब क्षणिक हैं। मुझे केवल सत्य चाहिए!”
यह था मनन — जहां बालक ने तर्क, विचार और विवेक से सत्य को खोजा।
यह था संशय निवारण — जहां उसने मृत्यु के भय पर प्रश्न किया, और अमर सत्य को जानना चाहा।यमराज ने अंततः आत्मा और ब्रह्म का ज्ञान दिया —
“नचिकेता! जो इस आत्मा को जान लेता है, वह मृत्यु से नहीं डरता, क्योंकि आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है।”