सचेतन, पंचतंत्र की कथा-22 : सिंह और खरगोश की कथा-1

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नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है सचेतन के इस विचार के सत्र  में में, जहाँ हम पंचतंत्र से अद्भुत और प्रेरणादायक कहानियाँ सुनते हैं।

“तरकीब से जो काम हो सकता है, वह बहादुरी से नहीं हो सकता। कौआ और कौई ने अपनी चतुराई से सोने की सिकड़ी का उपयोग करके काले नाग को मरवा दिया।”

इसलिए, बुद्धिमानों के लिए इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। कहा गया है, “जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास असली शक्ति होती है। बुद्धिहीन व्यक्ति के पास ताकत कैसे हो सकती है? एक छोटे खरगोश ने अपनी चतुराई से जंगल के मतवाले सिंह का अंत कर दिया।”

करटक ने पूछा, “यह कैसे हुआ?” तब दमनक ने कहानी सुनानी शुरू की—

यह कहानी जंगल के एक मतवाले सिंह और छोटे खरगोश की है, जिसमें जंगल के जीव-जंतुओं की बुद्धिमत्ता से सिंह के क्रूर शासन का अंत करने की कथा है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:

1. सिंह का अत्याचार:

किसी वन में ‘भासुरक’ नाम का एक सिंह रहता था। वह अपनी शक्ति के अहंकार में हर दिन हिरन, सूअर, भैंसे, खरगोश आदि को मारने से नहीं चूकता था। उसके आतंक से सभी वन्य जीव बेहद परेशान थे, क्योंकि सिंह उनके समुदाय को धीरे-धीरे समाप्त कर रहा था।

2. जानवरों की योजना:

सभी जानवरों ने इकट्ठे होकर सिंह से मिलकर बात करने का निश्चय किया। वे सिंह के पास गए और कहा, “स्वामी! रोज-रोज हमें मारने से क्या लाभ? आपकी तृप्ति तो एक ही जीव से हो सकती है। हम सभी एक समझौता करना चाहते हैं—हर दिन एक जानवर अपनी बारी से आपके भोजन के लिए आ जाएगा। इससे आपको बिना किसी मेहनत के भोजन मिल जाएगा और हमारा भी सर्वनाश नहीं होगा। कृपया, आप यह प्रस्ताव स्वीकार करें और प्रजा का उचित पालन करें।”

3. प्रजा पालन का महत्व:

जानवरों ने सिंह को राजधर्म के महत्व के बारे में बताया और कहा, “जो राजा अपनी प्रजा का पालन-पोषण धीरे-धीरे और न्यायपूर्वक करता है, वह ही सच्चा बलवान होता है। जैसे सूखी लकड़ी को मथने से मंत्रयुक्त विधि से आग निकलती है, उसी प्रकार सूखी जमीन भी राज्य के अच्छे प्रबंधन से फल देने लगती है।”

उन्होंने आगे समझाया, “प्रजा का पालन करना स्वर्ग देने वाला और खजाना बढ़ाने वाला होता है, जबकि प्रजा का पीड़न पाप और अपयश लाता है। ग्वाले की तरह राजा को अपनी प्रजा का पालन-पोषण करना चाहिए और न्यायपूर्वक उनके साथ व्यवहार करना चाहिए। जो राजा अपनी प्रजा को बेमतलब बकरी की तरह मारता है, वह अपनी प्रजा की सेवा से वंचित हो जाता है और केवल एक बार ही तृप्त हो सकता है।”

जानवरों ने सिंह से कहा कि जैसे माली पौधों की सेवा करता है, उसी तरह राजा को भी अपनी प्रजा का पालन दान, मान, और प्यार से करना चाहिए ताकि वह खुशहाल रहे। राजा की स्थिति दीपक जैसी होती है, जो अपने अंदर के उज्ज्वल गुणों से प्रजा का धन रूपी तेल ग्रहण करता है, लेकिन यह बात किसी की नजर में नहीं आती।

उन्होंने सिंह को समझाया कि जैसे गाय को पहले प्यार से पाला जाता है और समय आने पर उसका दूध निकाला जाता है, या जैसे फल देने वाली बेल को सींचकर उसकी देखभाल की जाती है और फल मिलने पर चुना जाता है, वैसे ही प्रजा को भी प्यार और सम्मान से पालन किया जाना चाहिए।

जैसे सूक्ष्म बीज की सही तरीके से रक्षा करने पर वह समय आने पर फल देता है, वैसे ही अगर प्रजा की अच्छी देखभाल की जाए, तो वह राजा के लिए फलदायी होती है। राजा के पास जो भी धन, अनाज, रत्न या अन्य संपत्ति होती है, वह सब प्रजा से ही मिलती है। प्रजा का उचित पालन करने वाले राजा का साम्राज्य बढ़ता है, जबकि प्रजा को परेशान करने वाले राजा का राज्य छीजता है। इसमें कोई शक नहीं है।

इन बातों को सुनने के बाद सिंह ने कहा, “तुम सब सही कह रहे हो। लेकिन ध्यान रहे, अगर रोज एक जानवर मेरे पास नहीं आया तो मैं सभी को मार डालूंगा।” जानवरों ने इस शर्त को मान लिया और प्रतिज्ञा की कि हर दिन एक जानवर अपनी बारी से सिंह के पास जाएगा। इस समझौते से वे सभी जानवर निश्चिंत हो गए और अब वे जंगल में निडर होकर घूमने लगे।

यह कहानी प्रजा-पालन और उसकी देखभाल के महत्व को दर्शाती है। इसमें यह बताया गया है कि जिस तरह एक माली अपने पौधों का पालन-पोषण करता है और सही समय पर फल प्राप्त करता है, वैसे ही एक राजा को भी अपनी प्रजा का पालन करना चाहिए ताकि वह फलदायी बन सके। साथ ही यह भी समझाया गया है कि प्रजा का उत्पीड़न करने से राजा का राज्य कमजोर हो जाता है, जबकि प्रजा का सही पालन करने से राजा और उसका राज्य समृद्ध होते हैं।

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि शक्ति और क्रूरता से लोगों पर शासन करना सही नहीं है, बल्कि उन्हें प्यार, सम्मान और सही देखभाल से खुश रखना ही सच्ची राजा की पहचान है। जानवरों की एकजुटता और सूझबूझ ने सिंह को इस समझौते के लिए तैयार किया और अपने जीवन को बचाने का तरीका खोज निकाला।

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