पंचतंत्र की कथा-09 : स्त्री स्वभाव दंतिल और गोरंभ की कहानी का विश्लेषण
दंतिल और गोरंभ की कहानी का विश्लेषण
पंचतंत्र के विदेशी अनुवादों की कहानी काफी दिलचस्प और प्रेरणादायक है। विद्वानों का कहना है कि पंचतंत्र एक ऐसा पर्वत है, जहाँ ज्ञान की बूटियाँ छिपी हुई हैं, जिनके सेवन से मूर्खता से जूझ रहा इंसान फिर से जी उठता है। इस अमृत की महिमा पंचतंत्र नामक ग्रंथ में समाहित है। इस ज्ञान का पहला बीज विदेश में तब बोया गया जब एक विद्वान, बुजुए, पंचतंत्र की एक प्रति ईरान ले गया और उसने इसे पहलवी भाषा में अनुवादित किया। हालांकि, अब वह अनुवाद उपलब्ध नहीं है, परन्तु यह किसी विदेशी भाषा में पंचतंत्र का पहला अनुवाद था।
कुछ वर्षों बाद, लगभग 570 ईस्वी में, पहलवी पंचतंत्र का अनुवाद सीरिया की प्राचीन भाषा में हुआ। यह अनुवाद उन्नीसवीं सदी के मध्य में अचानक प्रकाश में आया और जर्मन विद्वानों ने इसका सम्पादन और अनुवाद किया। यह अनुवाद मूल संस्कृत पंचतंत्र के भावों और कहानियों के सबसे करीब माना जाता है।
इसके बाद पंचतंत्र का अनुवाद कई भाषाओं में हुआ और यह सिलसिला अब्दुल्ला के अरबी अनुवाद से शुरू हुआ। इस अनुवाद में अब्दुल्ला ने अपनी भूमिका जोड़ी और कई कहानियाँ भी इसमें शामिल कीं। इस रूप में यह ग्रंथ अरबी भाषा के सबसे लोकप्रिय ग्रंथों में से एक बन गया। अरबी अनुवाद के आधार पर पंचतंत्र के विदेशी अनुवादों का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ, जिसने यूरोप की लगभग सभी भाषाओं को अपनी चपेट में ले लिया।
ग्यारहवीं सदी में सबसे पहले यूनानी भाषा में यूरोप का अनुवाद हुआ, जिससे रूसी और अन्य स्लाव भाषाओं में भी इसका प्रसार हुआ। पश्चिमी यूरोप के देशों को भी इस यूनानी अनुवाद का परिचय मिला और सोलहवीं सदी से लेकर कई बार इसे लैटिन, इटैलियन और जर्मन भाषाओं में अनुवाद किया गया।
लगभग 1251 ईस्वी में अरबी पंचतंत्र का एक अनुवाद प्राचीन स्पैनिश भाषा में किया गया। इससे पहले हेब्रू भाषा में भी अरबी से एक अनुवाद हुआ था। इस हेब्रू अनुवाद के आधार पर दक्षिणी इटली के कपुआ नगर के एक यहूदी विद्वान, जौन, ने इसे लैटिन में अनुवादित किया। इसका नाम रखा गया “कलीला व दमनः की पुस्तक – मानवी जीवन का कोष”। इस अनुवाद ने मध्यकालीन यूरोप में बड़ी धूम मचाई और इसके आधार पर पश्चिमी यूरोप के कई देशों ने अपनी-अपनी भाषाओं में पंचतंत्र का अनुवाद किया।
1480 के करीब जर्मन भाषा में कपुआ वाले पंचतंत्र के संस्करण का अनुवाद हुआ और यह इतना लोकप्रिय हुआ कि पचास साल में इसके बीस से अधिक संस्करण प्रकाशित हुए। इसके बाद डेन्मार्क, हॉलैंड, और आइसलैंड जैसी भाषाओं में भी इस जर्मन संस्करण के आधार पर अनुवाद किए गए।
पंचतंत्र का यह अनुवादों का सफर हमें दिखाता है कि यह केवल एक ग्रंथ नहीं था, बल्कि ज्ञान, नैतिकता और जीवन के गूढ़ सिद्धांतों का ऐसा खजाना था जिसने सीमाओं को पार किया और विभिन्न संस्कृतियों में अपनी अमूल्य छाप छोड़ी।
यह कहानी प्राचीन भारतीय साहित्यिक कथा परंपरा का हिस्सा लगती है, जिसमें मानव स्वभाव, रिश्ते, और सामाजिक धारणाओं को व्यंग्यात्मक और आलोचनात्मक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। ये कथाएँ उस समय के समाज की सोच और परंपराओं को दर्शाती हैं और मनुष्य के अनुभवों, कमजोरियों, और संबंधों की जटिलता पर रोशनी डालती हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
दंतिल और गोरंभ की कहानी का विश्लेषण करें तो स्वप्न और मानसिक इच्छाएँ को समझ सकते हैं।
कथाकार विष्णु शर्मा का कहना है कि मनुष्य दिन में जो सोचता है, देखता है, या जिन चीज़ों की उसे इच्छा होती है, वे बातें उसके सपनों में भी दिखाई देती हैं। इस विचार के माध्यम से यह बताया गया है कि मनुष्य की मानसिक स्थिति और उसके विचार उसके व्यवहार और सपनों में झलकते हैं। उदाहरण के लिए, व्यक्ति जो कुछ दिन में अनुभव करता है, वह अक्सर उसे सपने में भी नजर आता है। इसके अलावा, अवचेतन मन के अच्छे या बुरे विचार भी नशे की स्थिति या सपनों में प्रकट हो सकते हैं।
स्त्रियों का व्यवहार
गोरंभ, दंतिल से अपने अपमान का बदला लेने के लिए सपने का उदाहरण देते हुए राजा के मन में संदेह पैदा किया और बोला “अरे! दंतिल ने महारानी को आलिंगन किया।” राजा यह सुनते ही चौंक गया और उसने गोरंभ से पूछा, “यह सच है?” गोरंभ ने कहा, “मुझे नहीं पता, शायद मैं नींद में कुछ बोल गया हूँ।” लेकिन राजा के मन में संदेह पैदा हो गया और उसने दंतिल से दूरी बना ली। उसके बाद राजा ने दंतिल को महल से निकाल दिया और उससे पूरी तरह मुँह मोड़ लिया।
इस अंश में स्त्रियों के स्वभाव को लेकर व्यंग्यात्मक तरीके से बातें कही गई हैं। इसमें यह बताया गया है कि महिलाएँ एक व्यक्ति से बात करती हैं, दूसरे को नखरे दिखाती हैं, और किसी तीसरे को अपने मन में स्थान देती हैं। इसे एक नकारात्मक दृष्टिकोण से दिखाया गया है, जिसमें यह बताया गया है कि उनके मन में कौन प्रिय है, इसे समझ पाना मुश्किल है। यह विचार उस समय की सामाजिक धारणाओं को दर्शाता है, जिसमें स्त्रियों के प्रति अविश्वास और संदेह को जगह दी गई थी।
अंश में यह भी कहा गया है कि स्त्रियाँ मर्यादा में तभी रहती हैं जब एकांत का अवसर नहीं होता, या उनके पास कोई पुरुष नहीं होता। यह कथन स्त्रियों की वफादारी को संदेह की दृष्टि से देखता है और यह मानता है कि उनके सतीत्व का पालन केवल परिस्थितियों के कारण ही होता है, न कि उनकी इच्छाशक्ति से। यह विचार उस समय के समाज में स्त्रियों के प्रति पूर्वाग्रह को दर्शाता है।
राजा का क्रोध और दंतिल की स्थिति
राजा ने दंतिल पर कृपा करना बंद कर दी और उसे दरबार से बाहर कर दिया। इस पर दंतिल सोचता है कि धन मिलने पर कौन अहंकार नहीं करता, किसका मन स्त्रियों ने नहीं तोड़ा, और कौन काल के हाथ से बच सका है। यह विचार दर्शाता है कि मानव जीवन में अहंकार और मोह कैसे असर डालते हैं और किस तरह संबंधों में मनमुटाव पैदा हो जाता है।
इस कहानी में मनुष्य के जीवन की कमजोरियाँ, इच्छाएँ, और संबंधों की जटिलता को दिखाया गया है। इसमें विशेष रूप से स्त्रियों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण है, जो उस समय के समाज की धारणाओं और पूर्वाग्रहों को उजागर करता है। इस कथा का उद्देश्य सामाजिक और नैतिक शिक्षाएं देना था, लेकिन आज के समय में इस प्रकार की धारणाओं को आलोचनात्मक दृष्टि से देखा जा सकता है और इन पर सवाल उठाए जा सकते हैं।
इस प्रकार की कहानियाँ उस समय के समाज की सोच और धारणाओं को दिखाती हैं। हालांकि, वर्तमान में इन धारणाओं का विश्लेषण जरूरी है ताकि हम समझ सकें कि कैसे समय के साथ सामाजिक धारणाएं बदली हैं और कैसे हमें हर व्यक्ति के प्रति समान दृष्टिकोण रखना चाहिए।
कहानी का अंत इस पर होता है कि दमनक संजीवक को लेकर पिंगलक के पास आता है। पिंगलक, जो जंगल का राजा है, संजीवक का स्वागत करता है और उसकी प्रशंसा करता है। यह दृश्य इस बात का संकेत है कि कहानी का अगला चरण अब शुरू होने वाला है।
धन्यवाद दोस्तों, उम्मीद है आपको यह व्याख्या पसंद आई होगी। इस कहानी से हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि हमारे समाज में पूर्वाग्रह कैसे काम करते थे और हमें किस तरह आज उन धारणाओं को चुनौती देने और बदलने की आवश्यकता है। अगली बार फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ। तब तक के लिए, खुश रहिए और सकारात्मक रहिए!