सचेतन :9. श्रीशिवपुराण- चंचुला ने देवी पार्वती से अपने पति बिंदुगा की मुक्ति के लिए प्रार्थना की।
नवंबर 10, 2022- ShreeShivPuran
सचेतन :9. श्रीशिवपुराण- चंचुला ने देवी पार्वती से अपने पति बिंदुगा की मुक्ति के लिए प्रार्थना की।
Sachetan: Shri Shiv Puran – Chanchula prayed to goddess Parvati for the salvation of her husband, Binduga.
श्री सूतजी ने गोपनीय कथावस्तु का वर्णन करते हुए बोले एक वाष्कल नमक ग्राम में अधम, दुरात्मा और महापापी बिन्दुग नामधारी ब्राह्मण रहता था, जिसकी स्त्री चंचुला बड़ी सुंदरी थी और वह भी कुमार्ग पर ही चलती थी।
एक दिन दैव्य योग से किसी पुण्य पर्व के आने पर वह चंचुला भाई बंधुओं के साथ गोकर्ण क्षेत्र में घूमती घामती किसी देवमंदिर में गयी और वहां उसने एक दैव्य ब्राह्मण के मुख से भगवान् शिव की परम पवित्र एवं मंगलकारिणी उत्तम पौरणिक कथा सुनी। ब्राह्मण के मुख से कथा सुन कर चंचुला भय से व्याकुल हो कर ब्राह्मण देवताओं से बोलीं की मैं अपने धर्म को नहीं जानती थी इसीलिए मेरे द्वारा बड़ा दुराचार हुआ है। स्वामिन! मेरे ऊपर अनुपम कृपा करके आप मेरा उद्धार कीजिये।
सूतजी कहते हैं, शौनक! इस प्रकार खेद और वैराग्य से युक्त हुई चंचुला ब्राह्मण देवता के दोनों चरणों में गिर पड़ी। चंचुला की प्रार्थना से ब्राह्मण का उसे पूरा शिवपुराण सुनया। शिव की उत्तम कथा सुनने से चंचुला की बुद्धि पश्चाताप से युक्त एवं शुद्ध हो गयी थी।साथ ही उसके मन में विषयों के प्रति वैराग्य हो गया है। पश्चाताप ही पाप करने वाले पापिओं के लिए ही प्रायश्चित हैं। सत्पुरुषों ने सबके लिए पश्चाताप को ही समस्त पापों का शोधक बताया है, पश्चाताप से ही पापों की शुद्धि होती है।समयानुसार चंचुला ने अपने शरीर को बिना किसी कष्ट के त्याग कर वह दिव्यरूपिणी दिव्याग्ना बन कर शिवपुरी में पहुंचकर उसने सनातन देवता त्रिनेत्रधारी महादेवजी, गणेश, भृंगी, नन्दीश्वर तथा वीरभद्रेश्वर आदि की उत्तम भक्ति भाव से सेवा करने लगी। इस प्रकार परम उज्जवल भगवान शंकर का दर्शन कर के वह ब्राह्मण पत्नी चंचुला बहुत प्रसन्न हुई।
सुतजी बोले – शौनक ! एक दिन परमानन्द मेंं मग्न हुई चंचुला ने उमा देवी के पास जाकर प्रणाम किया और दोनो हाथ जोड़कर वह उनकी स्तुति करने लगी।
अब सूतजी कहते है – शौनक ! जिसे सदगति प्राप्त हो चूकि थी, वह चंचुला इस प्रकार महेश्वर पत्नी उमा की स्तुति करके सिर झुकाये चुप हो गयी। उसके नेत्रोंं मे प्रेम के आँसू उमड आये थे। तब करुणा से भरी शंकर प्रिया भक्तवत्सला पार्वती देवी ने चंचुला को संबोधित करके इस प्रकार कहा – पार्वती जी बोली – सखी चंचुले ! सुन्दरी ! मै तुम्हारी इस की हुई स्तुति से बहुत प्रसन्न हूँ।बोलो क्या वर मांगती हो ?
चंचुला बोली – निष्पाप गिरिराजकुमारी ! मेरे पति बिन्दुग इस समय कहाँँ है, उनकी कैसी गति हुई है – यह मैं नहीं जानती ! कल्याणमयी दिनवत्सले ! मै अपने पतिदेव से जिस प्रकार संयुक्त हो सकूँँ, वैसा ही उपाय किजिये। महेश्वरी ! महादेवी ! मेरे पति एक शुद्र जातिए वेश्या के प्रति आसक्त थे और पाप मे ही डुबे रहते थे। उनकी मौत मुझसे पहले हो गयी थी, ना जाने वे किस गति को प्राप्त हुए।
गिरिजा बोली – बेटी ! तुम्हारा बिन्दुग नामवाला पति बडा पापी था। उसका अंतःकरण बहुत ही दुषित था। वेश्या का उपभोग करने वाला वह महामूढ मरने के बाद नरक मे पडा अनगिनत बर्षो तक नरक मे नाना प्रकार के दुःख भोगकर वह पापात्मा अपने शेष पाप को भोगने के लिये विन्ध्यपर्वत पर पिचाश बन के बैठा है। इस समय वह पिचाश अवस्था में है और नाना प्रकार के क्लेश उठा रहा है। वह दुष्ट वहींं वायु पीकर रहता और वहींं सदा सब प्रकार कष्ट सहता है।
अब सूूतजी कहते है – शौनक ! गौरीदेवी कि यह बात सुनकर उतम व्रत का पालन करनेवाली चंचुला पति के महान दुःख से दुःखी हो गयी। फिर मन को स्थिर कर के उस ब्राह्मण पत्नि ने व्यथित ह्रदय से महेश्ववरी को प्रणाम कर के पुनः पुछा हे महादेवी! मुझपर कृपा किजिये और दूषित कर्म करने वाले मेरे उस दुष्ट पति का अब उद्धार कर दिजिये। देवि, कुत्सित बुद्धी वाले मेरे उस पापात्मा पति को किस उपाय से उतम गति प्राप्त हो सकती है, यह शीघ्र बताइये। आपको नमस्कार है।
पार्वतीजी ने कहा – तुम्हारा पति अगर शिव पुराण की पुण्यमयी उत्तम कथा सुने तो सारी दुर्गति को पार कर के उत्तम गति का भागी हो सकता है।
अमृत के समान मधुर अक्षरोंं से युक्त गौरी देवी का वह वचन आदरपूर्वक सुनकर चंचुला ने हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर उन्हे बारंबार प्रणाम किया और अपने पति के समस्त पापोंं की शुद्धि तथा उतम गति कि प्राप्ति के लिये पार्वती देवी से यह प्रार्थना की कि, “मेरे पति को शिवपुराण सुनाने कि व्यवस्था होनी चाहिये”।
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