सचेतन 129 : श्री शिव पुराण- शिव आपकी तपस्या से प्रसन्न ज़रूर होते हैं 

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कन्नप्पा शिव के कट्टर भक्त थे और पिछले जन्म में पांडवों के अर्जुन थे ।

कन्नप्पा शिव के कट्टर भक्त थे और श्रीकालहस्तीश्वर मंदिर से निकटता से जुड़े हुए थे। वह एक शिकारी था और माना जाता है कि श्रीकालहस्ती मंदिर के पीठासीन देवता, श्रीकालहस्तीश्वर लिंग को चढ़ाने के लिए उसने अपनी आँखें निकल ली थीं। उन्हें 63 नयनार या पवित्र शैव संतों में से एक माना जाता है , जो शिव के कट्टर भक्त हैं । ऐतिहासिक कालक्रम के अनुसार, वह अपने पिछले जन्म में पांडवों के अर्जुन थे ।

जब पांडव द्रौपदी सहित वन में अज्ञातवास का समय बिता रहे थे तब उनके तमाम कष्टों को देखते हुए श्रीकृष्ण और महर्षि व्यासजी ने अर्जुन से भगवान शिव को प्रसन्न करके उनसे वर प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। भगवान शिवजी को प्रसन्न करने का उन्होंने उपाय भी अर्जुन को बताया।

वीर अर्जुन, शिवजी को प्रसन्न करने के लिए और अपने राज्य पर आए संकटों के निवारण हेतु व्यासजी के निर्देशानुसार इंद्रकील पर्वत पर पहुंच गए। उन्होंने जाह्ववी के तट पर शिवलिंग का निर्माण किया और उस शिवलिंग की विधिवत पूजा-अर्चना करते हुए तप करने लगे। अपने गुप्तचरों द्वारा जब इंद्र को इस बात का पता चला तो वे तुरंत ही अर्जुन का मनोरथ समझ गए और तत्काल वृद्ध ब्रह्मचारी का वेष धारण करे वहां आए और अर्जुन का आतिथ्य ग्रहण करने के बाद कई प्रकार से उसे तप विमुख करने का, ध्यान भंग करने का प्रयत्न किया, लेकिन जब वो इसमें सफल नहीं हो पाए तब अपने वास्तविक रूप में अर्जुन के सामने आ गए।

उन्होंने अर्जुन को शि‍वजी के दिव्य मंत्र का उपदेश दिया और अपने अनुचरों को अर्जुन की रक्षा करने का आदेश देकर अंतर्ध्यान हो गए। तदुपरांत महर्षि व्यासजी के कहे अनुसार शिवजी का ध्यान करते हुए एक पैर पर खड़े हो गए और ‘ॐ नम: शिवाय’ का जप करने लगे। अर्जुन की घोर तपस्या देखकर देवगण भगवान शिव के पास पहुंचे और अर्जुन को वर प्रदान करने के लिए प्रार्थना करने लगे। देवगणों की बात सुनकर शिवजी मुस्कुराए और बोले- ‘आप लोग निश्चिंत रहें।’ 

भगवान शिव के ये शब्द सुनकर सभी देवगण संतुष्ट हो गए और अपने-अपने स्थान को लौट गए।

इधर अर्जुन के पास दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ ‘मूक’ नाम का एक राक्षस सूकर का रूप धारण कर वृक्षों को उखाड़ता, पर्वतों को नुकसान पहुंचाता वहां पहुंचा। उसे देखकर अर्जुन को समझते देर नहीं लगी कि ये मेरा ही नुकसान-अहित करना चाहता है। उन्होंने तुरंत अपना धनुष-बाण उठा लिया।

और भगवान शिव अब अर्जुन की परीक्षा लेना चाहा की यह किस योग्य है। 

आपको कन्नप्पा शिव के कट्टर भक्त की कथा कही थी और कहा था की वो ऐतिहासिक कालक्रम के अनुसार, वह अपने पिछले जन्म में पांडवों के अर्जुन थे।

कन्नप्पा शिव के कट्टर भक्त थे और पिछले जन्म में पांडवों के अर्जुन थे ।

कन्नप्पा शिव के कट्टर भक्त थे और श्रीकालहस्तीश्वर मंदिर से निकटता से जुड़े हुए थे। वह एक शिकारी था और माना जाता है कि श्रीकालहस्ती मंदिर के पीठासीन देवता, श्रीकालहस्तीश्वर लिंग को चढ़ाने के लिए उसने अपनी आँखें निकल ली थीं। उन्हें 63 नयनार या पवित्र शैव संतों में से एक माना जाता है , जो शिव के कट्टर भक्त हैं । ऐतिहासिक कालक्रम के अनुसार, वह अपने पिछले जन्म में पांडवों के अर्जुन थे ।

जब पांडव द्रौपदी सहित वन में अज्ञातवास का समय बिता रहे थे तब उनके तमाम कष्टों को देखते हुए श्रीकृष्ण और महर्षि व्यासजी ने अर्जुन से भगवान शिव को प्रसन्न करके उनसे वर प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। भगवान शिवजी को प्रसन्न करने का उन्होंने उपाय भी अर्जुन को बताया।

वीर अर्जुन, शिवजी को प्रसन्न करने के लिए और अपने राज्य पर आए संकटों के निवारण हेतु व्यासजी के निर्देशानुसार इंद्रकील पर्वत पर पहुंच गए। उन्होंने जाह्ववी के तट पर शिवलिंग का निर्माण किया और उस शिवलिंग की विधिवत पूजा-अर्चना करते हुए तप करने लगे। अपने गुप्तचरों द्वारा जब इंद्र को इस बात का पता चला तो वे तुरंत ही अर्जुन का मनोरथ समझ गए और तत्काल वृद्ध ब्रह्मचारी का वेष धारण करे वहां आए और अर्जुन का आतिथ्य ग्रहण करने के बाद कई प्रकार से उसे तप विमुख करने का, ध्यान भंग करने का प्रयत्न किया, लेकिन जब वो इसमें सफल नहीं हो पाए तब अपने वास्तविक रूप में अर्जुन के सामने आ गए।

उन्होंने अर्जुन को शि‍वजी के दिव्य मंत्र का उपदेश दिया और अपने अनुचरों को अर्जुन की रक्षा करने का आदेश देकर अंतर्ध्यान हो गए। तदुपरांत महर्षि व्यासजी के कहे अनुसार शिवजी का ध्यान करते हुए एक पैर पर खड़े हो गए और ‘ॐ नम: शिवाय’ का जप करने लगे। अर्जुन की घोर तपस्या देखकर देवगण भगवान शिव के पास पहुंचे और अर्जुन को वर प्रदान करने के लिए प्रार्थना करने लगे। देवगणों की बात सुनकर शिवजी मुस्कुराए और बोले- ‘आप लोग निश्चिंत रहें।’ 

भगवान शिव के ये शब्द सुनकर सभी देवगण संतुष्ट हो गए और अपने-अपने स्थान को लौट गए।

इधर अर्जुन के पास दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ ‘मूक’ नाम का एक राक्षस सूकर का रूप धारण कर वृक्षों को उखाड़ता, पर्वतों को नुकसान पहुंचाता वहां पहुंचा। उसे देखकर अर्जुन को समझते देर नहीं लगी कि ये मेरा ही नुकसान-अहित करना चाहता है। उन्होंने तुरंत अपना धनुष-बाण उठा लिया।

और भगवान शिव अब अर्जुन की परीक्षा लेना चाहा की यह किस योग्य है। 

आपको कन्नप्पा शिव के कट्टर भक्त की कथा कही थी और कहा था की वो ऐतिहासिक कालक्रम के अनुसार, वह अपने पिछले जन्म में पांडवों के अर्जुन थे।

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