सचेतन 137 : श्री शिव पुराण- महादेव स्वरूप बुद्धि, दृष्टि और ज्ञान का अद्भुत मिलन है।

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शिव तत्व मन के परे है।

महादेव स्वरूप में शिव चन्द्र समान हैं। चन्द्र लिंग, यानी चन्द्र- गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित सोमनाथ का मंदिर चंद्र से संबंधित ही है।

पश्चिम बंगाल में चंद्रनाथ लिंग चटागाव शहर से 34 मील दूर पश्चिम बंगाल में स्थित है। कई पवित्र तीर्थ इस क्षेत्र को घेरे हुए हैं। देवी पुराण ने इस क्षेत्र की बहुत प्रशंसा की।

शिव तत्व वह तत्व है जो कि मन के परे है। चंद्रमा मन का प्रतीक होता है। मन के परे निर्गुण अवस्था को कैसे कोई अभिव्यक्त कर सकता है? इस निर्वचनीय स्थिति को कैसे कोई समझ सकता है? समझने, अनुभव करने और व्यक्त करने के लिये मानस का थोड़ा उपयोग करना आवश्यक है। अप्रकट, अनंत, अवचेतन अवस्था को प्रकट जगत में व्यक्त करने के लिये कुछ मन की आवश्यकता होती है। इसीलिये, अव्यक्त को व्यक्त करने के लिये शिव के शिखर पर यह पतला सा चन्द्रमा है जो कि मन का द्योतक है।

ब्रह्मज्ञान मन के परे है, परन्तु उसे व्यक्त करने के लिये थोड़े मानस की आवश्यकता है – यही चंद्रशेखर का प्रतीक है।

शिव को महादेव कहने का महत्व यही है की ऐसी कोई घटना जो नहीं हुई हो। कोई युद्ध नहीं हुआ, कोई टकराव नहीं हुआ। उन्होंने युग की जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने मानव चेतनता को इस प्रकार से बढ़ाने के साधन और तरीके दिए, कि वे हर युग में प्रासंगिक रहें। जब लोग भोजन, प्यार या शांति से वंचित हों और आप उनकी कमी को पूरा करते हैं, तो आप उस समय सबसे महत्वपूर्ण बन सकते हैं। लेकिन जब ऐसा कोई अभाव न हो, तो एक इंसान के लिए सबसे महत्वपूर्ण आखिरकार यह है कि खुद को और ऊपर कैसे उठाएँ या खुद को विकसित कैसे करें।

हमने सिर्फ उन्हें महादेव की उपाधि दी क्योंकि उनके योगदान के पीछे की बुद्धि, दृष्टि और ज्ञान अद्भुत है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहाँ पैदा हुए, आप किस धर्म, जाति या वर्ग के हैं, आप पुरुष हैं या स्त्री – इन तरीकों का इस्तेमाल हमेशा किया जा सकता है। चाहे लोग उनको भूल जाएँ, लेकिन उन्हें वही तरीके इस्तेमाल करने होंगे क्योंकि उन्होंने मानव तंत्र के भीतर कुछ भी अछूता नहीं छोड़ा। उन्होंने कोई उपदेश नहीं दिया। उन्होंने उस युग के लिए कोई समाधान नहीं दिया। जब लोग वैसी समस्याएँ लेकर उनके पास आए, तो उन्होंने बस अपनी आँखें बंद कर लीं और पूरी तरह उदासीन रहे।

मनुष्य की प्रकृति को समझने, हर तरह के मनुष्य के लिए एक रास्ता खोजने के अर्थ में, यह वाकई एक शाश्वत या हमेशा बना रहने वाला योगदान है, यह उस युग का या उस युग के लिए योगदान नहीं है। सृष्टि का अर्थ है कि जो कुछ नहीं था, वह एक-दूसरे से मिलकर कुछ बन गया। उन्होंने इस सृष्टि को खोलकर एक शून्य की स्थिति में लाने का तरीका खोजा।

अगर आपकी बुद्धिमानी एक खास ऊँचाई पर पहुँच जाती है, तो आपको किसी नैतिकता की जरूरत नहीं होगी। सिर्फ बुद्धि की कमी होने पर ही आपको लोगों को बताना पड़ता है कि क्या नहीं करना है। अगर किसी की बुद्धि विकसित है, तो उसे बताने की ज़रूरत नहीं है कि क्या करना है और क्या नहीं। उन्होंने इस बारे में एक शब्द भी नहीं बोला कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

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