सचेतन, पंचतंत्र की कथा-66 : कपिंजल खरगोश-२

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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-66 : कपिंजल खरगोश-२

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इस कहानी में खरगोश और गौरैया के मध्य संवाद और उनकी चिंताओं, आशाओं और धार्मिक विचारों को बहुत सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है। यह कहानी प्राचीन भारतीय साहित्य और दर्शन के समृद्ध तत्वों को समेटे हुए है, जहां प्रकृति और जीवन के प्रति मानवीय विचारों और नैतिकता का गहन अध्ययन किया गया है।

कहानी में उल्लिखित धर्म-शास्त्र के संदर्भ और उनका जीवन में अनुप्रयोग, सामाजिक और व्यक्तिगत संबंधों में धर्म की भूमिका को उजागर करते हैं। यह भी दर्शाता है कि कैसे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने न केवल मनुष्यों के लिए, बल्कि जीव-जंतुओं और पक्षियों के लिए भी सामाजिक नियमों की रचना की थी। इससे यह संकेत मिलता है कि धर्म और नैतिकता के नियम सभी प्राणियों के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि मनुष्यों के लिए।

इस कहानी का आखिरी भाग, जहां खरगोश और गौरैया धर्म-शास्त्रज्ञ के पास जाते हैं, यह दर्शाता है कि समझौता और सह-अस्तित्व किस प्रकार महत्वपूर्ण हैं। यह भाग यह भी सुझाव देता है कि प्राचीन भारत में धार्मिक और नैतिक शिक्षाओं का पालन करने में गहरी आस्था थी, और यह कि न्याय और धर्म के मार्ग पर चलना ही सबसे उत्तम समाधान है।

इस कहानी का प्रत्येक भाग जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूता है, और यह एक शिक्षाप्रद तथा मनोरंजक कहानी के रूप में उभर कर आता है।

दोनों खरगोश कपिंजल और दूसरा खरगोश जो उसके बिल पर कब्जा कर रखा था दूर खड़े होकर बोले, उस जंगली बिल्ला जिसका नाम तीक्ष्णदंश था उससे बोला “हे धर्मोपदेशक तपस्वी! हमारे बीच में झगड़ा हुआ है, इसलिए धर्मशास्त्र के अनुसार इसका निर्णय कीजिए। जो झूठ बोल रहा है, उसे आप खा जाइए।” 

उन्होंने जवाब दिया, “भले लोगों, ऐसा न कहो! मैंने हिंसा के रास्ते को त्याग दिया है। अहिंसा ही धर्म का सच्चा मार्ग है।”

उन्होंने आगे कहा, “सतपुरुष अहिंसा को धर्म का मूल मानते हैं, इसलिए जूं, खटमल और डांस तक की हिंसा नहीं करनी चाहिए। जो लोग हिंसक प्राणियों को भी मारते हैं, वे घोर नरक में जाते हैं। फिर जो शुभ प्राणियों की हिंसा करते हैं, उनके बारे में क्या कहना।” इस उद्धरण में अहिंसा के महत्व को बहुत सुंदरता से दर्शाया गया है। यहाँ बताया गया है कि सतपुरुष, यानि अच्छे और धर्मी लोग, अहिंसा को धर्म का मूल मानते हैं। उनकी दृष्टि में, जीवन के सभी प्राणियों के प्रति करुणा और सम्मान होना चाहिए, चाहे वो छोटे जीव जैसे कि जूं और खटमल हों या बड़े प्राणी। इसके अलावा, इसमें यह भी विचार व्यक्त किया गया है कि जो लोग हिंसा करते हैं, विशेषकर निर्दोष प्राणियों की, उनके लिए धार्मिक और नैतिक परिणाम हो सकते हैं। यह दर्शन हमें सिखाता है कि सभी जीवों के प्रति दया और अहिंसा बरतनी चाहिए।

“जो लोग यज्ञ में पशुओं की बलि देते हैं, वे श्रुतियों का गूढ़ अर्थ नहीं समझते। श्रुति में कहा गया है कि यज्ञ में बकरे की बलि नहीं, बल्कि पुराने चावल से यज्ञ करना चाहिए।” यह वाक्य भारतीय धर्मग्रंथों के अर्थों की विविधता और उनकी व्याख्याओं की गहराई को दर्शाता है। इसका अर्थ है कि श्रुतियां, जो वैदिक धर्मग्रंथ हैं, वास्तव में पशुबलि का समर्थन नहीं करतीं, बल्कि अनाज जैसे शाकाहारी पदार्थों के प्रयोग की बात करती हैं। यह बताता है कि धार्मिक प्रथाओं को समझने के लिए उनकी गहराई में जाना आवश्यक है और सतही अर्थों से आगे बढ़कर उनके मूल संदेशों को समझना चाहिए।

“जो व्यक्ति वृक्ष काटकर, पशु मारकर और लहू का कीचड़ कर स्वर्ग जा सकता है, तो नरक में कौन जाता है? इसलिए, मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा, पर तुम्हारे झगड़े का निष्पक्ष निर्णय करूंगा।” यह वाक्य आदर्शवादी और अहिंसात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह व्यक्त करता है कि जीवन का सम्मान करना चाहिए और हिंसा के बिना भी न्याय संभव है। यह उस विचार को भी बल देता है कि स्वर्ग की प्राप्ति के लिए अहिंसा का पालन करना चाहिए, न कि हिंसा के द्वारा। इस विचार को व्यक्त करने वाला शायद यह संकेत देना चाहता है कि अच्छे कर्म ही व्यक्ति को उच्च स्थान पर पहुँचा सकते हैं, न कि दूसरों के प्रति क्रूरता।

जंगली बिल्ला तीक्ष्णदंश बोला की, मैं बूढ़ा हो गया हूं और दूर से सही से नहीं सुन सकता। इसलिए, मेरे पास आकर अपनी बात रखो, ताकि मैं तुम्हारे विवाद का कारण समझ सकूं और ऐसा फैसला करूं जिससे मेरे परलोक की दुर्गति न हो।”

जो व्यक्ति अभिमान, लोभ, क्रोध, या भय के कारण झूठा न्याय करता है, वह नरक को प्राप्त होता है। जो कोई घोड़े के बारे में झूठी गवाही देता है, उसे एक जीव की हिंसा के बराबर पाप लगता है। गाय के बारे में झूठी गवाही देने वाले को दस जीवों की हिंसा के बराबर पाप लगता है। कन्या के बारे में झूठी गवाही देने वाले को सौ जीवों के मारने का पाप लगता है और पुरुष के बारे में झूठी गवाही देने वाले को हजार जीवों की हिंसा का पाप लगता है।

जो व्यक्ति सभा के बीच में बैठकर स्पष्ट बातें नहीं कहता, उसे दूर से ही त्याग देना चाहिए या फिर उसे तुरंत अपना निर्णय सुना देना चाहिए।

यह विचार नैतिकता और न्याय के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को दर्शाता है। यह सिखाता है कि कैसे झूठी गवाही देना न केवल व्यक्तिगत अधर्म है, बल्कि यह समाज में विश्वास और न्याय की भावना को भी क्षति पहुँचाता है। इसके अलावा, यह यह भी बताता है कि न्यायिक या सामाजिक सभाओं में स्पष्टता और सच्चाई के साथ बोलना कितना अनिवार्य है।

इसलिए तुम मेरे पर विश्वास रखते हुए अपनी लड़ाई के बारे में मुझे बताओ। उस नीच बिल्ले ने उन दोनों भोले व्यक्तियों का इतना विश्वास जीत लिया कि वे दोनों उसकी गोद में बैठ गए। बाद में उसने एक को अपने पंजों से और दूसरे को अपने दांतों से पकड़ लिया और उनके मरने पर उन्हें खा गया।

न्याय की आशा में न्यायाधीश के पास गए वह खरगोश और कपिजल पहले ही समय में नष्ट हो गए।

यह कहानी एक कौआ और कृकालिका नामक जीव की बातचीत होती है। कौआ अपने घर की ओर चल दिया और पीछे से सोचने लगा कि उसने बिना कारण ही दुश्मनी क्यों साधी? उसने सोचा कि बिना कारण बुरे शब्द बोलना जहर के समान होता है और एक बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी जानबूझकर दूसरों से दुश्मनी नहीं करता है।

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