सचेतन 3.41 : नाद योग: आंतरिक आनंद का महत्व

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आंतरिक आनंद का वास्तविक अर्थ

नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपके पसंदीदा “सचेतन” कार्यक्रम में। आज हम चर्चा करेंगे आंतरिक आनंद के गहरे महत्व पर। इसे समझने के लिए एक प्राचीन कथा के माध्यम से जानेंगे कि वास्तविक आनंद कहाँ छिपा है और इसे प्राप्त करने के लिए हमें किस दिशा में यात्रा करनी चाहिए। आइए, इस सुंदर कथा को सुनते हैं।

कथा: राजा और संत

एक समय की बात है, एक समृद्ध और शक्तिशाली राजा था, जिसके पास हर भौतिक सुख-सुविधा थी। उसके महल में सोने-चांदी का अंबार था, भोजन की कमी कभी नहीं थी, और सेवक उसकी सेवा में हर समय तत्पर रहते थे। फिर भी, राजा के मन में शांति नहीं थी। वह हर समय बेचैन और असंतुष्ट महसूस करता था।

एक दिन राजा ने अपने राज्य में एक संत के आगमन की खबर सुनी, जिनके बारे में कहा जाता था कि वे हर समय प्रसन्न और शांत रहते थे। राजा ने सोचा, “यह कैसे संभव है? मेरे पास इतनी दौलत और सुविधाएँ हैं, फिर भी मैं प्रसन्न नहीं हूँ, और यह साधारण संत हमेशा आनंद में रहते हैं!”

राजा ने संत से मिलने का निर्णय किया और उनके आश्रम पहुँचे।

राजा का प्रश्न

राजा ने संत से पूछा, “महाराज, आपके पास न महल है, न संपत्ति, न सेवक, फिर भी आप इतने प्रसन्न और आनंदित कैसे रहते हैं? मैं, जो इस राज्य का राजा हूँ, इतना कुछ होने के बावजूद भी असंतुष्ट और बेचैन रहता हूँ। कृपया मुझे इसका रहस्य बताइए।”

संत मुस्कुराए और राजा को शांत स्वर में बोले, “राजन, आंतरिक आनंद वह खजाना है, जो बाहरी वस्तुओं या संपत्ति में नहीं मिलता। असली आनंद तुम्हारे भीतर ही है। यदि तुम इसे खोजना चाहते हो, तो तुम्हें अपने भीतर की यात्रा करनी होगी, न कि बाहरी वस्त्रों और भौतिक साधनों में।”

संत की परीक्षा

राजा इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ। उसने सोचा कि संत शायद मेरी बातों को समझ नहीं पा रहे हैं। संत ने राजा की उलझन को समझा और एक उपाय सुझाया।

संत ने राजा से कहा, “राजन, यदि तुम सच्चा आनंद पाना चाहते हो, तो एक कार्य करो। कल तुम अपनी सबसे प्रिय वस्तु लेकर आओ, और मैं तुम्हें आनंद का वास्तविक रहस्य बताऊँगा।”

राजा ने सोचा कि उसकी सबसे प्रिय वस्तु उसकी सुनहरी तलवार है, जो उसे युद्ध में विजय दिलाती है। अगले दिन वह अपनी तलवार लेकर संत के पास पहुँचा।

सच्चा आनंद कहाँ है?

संत ने राजा से कहा, “राजन, अब इस तलवार को अपनी आँखें बंद करके अपने हृदय से लगाओ और ध्यान करो। सोचो कि यह तलवार तुम्हारे सभी सुख-दुखों का प्रतीक है। अब इसे धीरे-धीरे छोड़ दो।”

राजा ने आँखें बंद कीं और तलवार को अपने हृदय से लगाया। थोड़ी देर ध्यान करने के बाद, उसने संत की बात मानकर तलवार को धीरे-धीरे छोड़ दिया। जब उसने अपनी आँखें खोलीं, तो उसे एक अजीब सी शांति और हल्कापन महसूस हुआ।

संत ने मुस्कुराते हुए कहा, “राजन, देखो, जब तुमने अपनी सबसे प्रिय वस्तु को छोड़ दिया, तब तुम्हें असली शांति और आनंद का अनुभव हुआ। यही आंतरिक आनंद है। यह उस समय आता है, जब हम अपनी भौतिक इच्छाओं और लगावों से मुक्त हो जाते हैं।”

आंतरिक आनंद का वास्तविक अर्थ

संत ने समझाया, “राजन, आंतरिक आनंद वह है, जो हमारे मन और आत्मा में विद्यमान होता है। यह आनंद तब प्राप्त होता है, जब हम बाहरी वस्तुओं और भौतिक सुखों की तलाश छोड़कर अपने भीतर की यात्रा शुरू करते हैं। यह वह स्थायी आनंद है, जिसे कोई बाहरी चीज नहीं दे सकती।”

संत ने आगे कहा, “जब तक हम अपने आनंद को बाहरी चीजों में ढूंढते रहेंगे, हम असंतुष्ट रहेंगे। लेकिन जब हम अपने भीतर की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं और अपनी आत्मा की शुद्धता का अनुभव करते हैं, तभी हमें सच्चे और स्थायी आनंद की प्राप्ति होती है।”

राजा की जागरूकता

राजा ने संत की बातों को समझ लिया। उसे महसूस हुआ कि वह अब तक बाहरी सुख-सुविधाओं और संपत्ति में आनंद ढूंढता रहा था, लेकिन सच्चा आनंद तो उसके अपने भीतर ही था। राजा ने संत से विदा ली और अपना ध्यान और मन भौतिक चीजों से हटाकर आत्मा के आनंद की ओर केंद्रित करने लगा।

कथा का संदेश

इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि असली आनंद बाहरी वस्त्रों, संपत्तियों, और भौतिक सुखों में नहीं है, बल्कि वह हमारे भीतर ही छिपा हुआ है। जब हम अपने मन और आत्मा को शांत करके ध्यान और साधना की ओर अग्रसर होते हैं, तब हमें उस आंतरिक आनंद का अनुभव होता है, जो स्थायी और शाश्वत है।

आंतरिक आनंद वह खजाना है, जो हर किसी के भीतर मौजूद है। यह आनंद न तो किसी संपत्ति में है और न ही किसी भौतिक वस्त्र में। यह आनंद हमें तभी प्राप्त होता है, जब हम अपने भीतर की ओर यात्रा करते हैं और आत्मा की शुद्धता का अनुभव करते हैं। आंतरिक आनंद मोक्ष की दिशा में पहला कदम है, जो हमें शांति और स्थिरता की ओर ले जाता है।

आज के इस “सचेतन” कार्यक्रम में इतना ही। हमें उम्मीद है कि इस कथा के माध्यम से आपको आंतरिक आनंद का महत्व समझ में आया होगा। अपने भीतर की यात्रा करें और उस शाश्वत आनंद का अनुभव करें, जो हर किसी के भीतर विद्यमान है।

नमस्कार!

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