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सचेतन- 12: प्रज्ञा (Prajña) – आत्मबोध या गूढ़ बुद्धि

प्रज्ञा का अर्थ है – वह गहरी बुद्धि जो केवल सोचने या समझने तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मिक अनुभव से उत्पन्न होती है।यह वह स्थिति है जहाँ सत्य का प्रत्यक्ष बोध होता है — न केवल “जानना”, बल्कि “हो जाना”। 🧠 प्रज्ञा की विशेषताएँ: 📜 वेदांत में प्रज्ञा, उपनिषदों में कहा गया है:  “प्राज्ञः […]

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सचेतन- 11: समझदारी (Wisdom) – अनुभव और विवेक का मेल

जब मन स्थिर होता है, तब विज्ञान जाग्रत होता है — और जब विज्ञान शुद्ध होता है, तब प्रज्ञा (आत्मिक बोध) प्रकट होती है। “जब मन स्थिर होता है…” 👉 यानी जब मन चंचलता छोड़कर शांत और एकाग्र होता है, तब वह इंद्रियों से मिली जानकारियों को सही तरह से ग्रहण कर सकता है। “…तब […]

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सचेतन- 10: विज्ञान (Vijnana) – विवेकशील बुद्धि

‘विज्ञान’ का अर्थ है – विशेष ज्ञान या विवेकपूर्ण बुद्धि, जो चीज़ों को समझने, परखने और निर्णय लेने में हमारी मदद करती है। यह केवल जानकारी (Information) नहीं, बल्कि समझदारी (Wisdom) है – सही और गलत में फर्क करने की बुद्धि। 🔍 मुख्य कार्य: 🌼 उदाहरण से समझें: मान लीजिए आपने एक मिठाई देखी। यह […]

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सचेतन- 9: मन या मनोवृत्ति

‘मनस्’, ‘विज्ञान’, और ‘प्रज्ञा’ — ये तीनों शब्द भारतीय दर्शन और उपनिषदों में मानव चेतना के विभिन्न स्तरों को दर्शाते हैं। 🧠 मनस् • विज्ञान • प्रज्ञा भारतीय दर्शन में चेतना के तीन सोपान: 🌟 1. मनस् (Manas) – विचारों की शुरुआत इंद्रियों से जानकारी लेकर उसे जोड़ता है और विचार बनाता है।उदाहरण: एक किसान […]

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सचेतन- 8: मानव चेतना के विभिन्न स्तर

‘मनस्’, ‘विज्ञान’, और ‘प्रज्ञा’ — ये तीनों शब्द भारतीय दर्शन और उपनिषदों में मानव चेतना के विभिन्न स्तरों को दर्शाते हैं। आइए इन्हें सरल और स्पष्ट भाषा में समझें: 🧠 1. मनस् (Manas) – मन या मनोवृत्ति ‘मनस्’ वह मानसिक शक्ति है जो इंद्रियों से जानकारी ग्रहण करती है, उसे जोड़ती है, और विचारों को […]

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सचेतन- 7: आत्मा – चेतना का आधार

🕉️ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म को जानना: 🌟 ब्रह्म को जानने का परिणाम: 📖 एक सरल उदाहरण: जैसे समुद्र की लहरें समुद्र से अलग नहीं होतीं, वैसे ही आत्मा ब्रह्म से अलग नहीं है।ब्रह्म को जानना = यह जानना कि मैं लहर नहीं, मैं स्वयं समुद्र हूँ। 1. अहं ब्रह्मास्मि (Aham Brahmasmi) – मैं ब्रह्म […]

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सचेतन- 6: निदिध्यासन – आत्मा का साक्षात्कार

स्वामी विवेकानंद कहते थे — “जब विचारों का शुद्धिकरण हो जाता है, तब मन सत्य में स्थित होता है। तब ज्ञाता और ज्ञेय के बीच भेद मिट जाता है। यही है निदिध्यासन — आत्मा के स्वरूप में स्थित हो जाना।” निष्कर्ष निदिध्यासन आत्म-चिंतन की वह पराकाष्ठा है, जहाँ ‘जानना’ और ‘हो जाना’ एक हो जाता […]

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सचेतन- 4: चिंतन और संशय निवारण: चेतना का मार्ग

संशय का अर्थ होता है — संदेह या शंका। लेकिन यह केवल नकारात्मक भावना नहीं है। भारतीय दर्शन में संशय को चिंतन का पहला चरण माना गया है। 🌿 संशय – आत्मज्ञान की पहली सीढ़ी संशय वही अवस्था है जब मन प्रश्न करता है: इन्हीं प्रश्नों से मनन की शुरुआत होती है। संशय हमारी चेतना […]

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सचेतन- 2: सुनने मात्र से चेतना की जागृति का मार्ग

चेतना को जानने के तीन मार्ग 1. श्रवण (Shravanam) – “सुनना और ग्रहण करना” परिभाषा: श्रवण का अर्थ है – गुरु या आचार्य से वेद, उपनिषद, भगवद्गीता जैसे शास्त्रों का ज्ञान श्रद्धा और ध्यानपूर्वक सुनना। महत्व: कैसे करें: कहानी: अर्जुन का श्रवण – समर्पण से ज्ञान की ओर कुरुक्षेत्र का मैदान युद्ध के लिए तैयार […]

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सचेतन- 1: चेतना क्या है? Consciousness

चेतना का अर्थ है — जागरूकता, यानी अपने विचारों, भावनाओं, शरीर और आसपास की दुनिया के प्रति सचेत होना। 🌼 सरल शब्दों में: जब आप जानते हैं कि आप कौन हैं, कहाँ हैं, क्या सोच रहे हैं, और क्या महसूस कर रहे हैं — तो आप चेतन हैं। 🌟 उदाहरण: 🧠 वैज्ञानिक दृष्टिकोण: चेतना मस्तिष्क […]